चेन्नई में ‘दिव्य प्रेम-लीला’ पुस्तक के तमिल अनुवाद का लोकार्पण

18 मार्च, 2017

वाईएसएस के शताब्दी महोत्सव के भाग के रूप में, चेन्नई में 4 फ़रवरी, 2017 को एक सार्वजनिक समारोह में गुरुदेव के प्रवचनों का संकलन ‘दिव्य प्रेम-लीला‘ के तमिल अनुवाद का लोकार्पण किया गया। प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता व निर्माता,पद्म-विभूषण से पुरस्कृत, समाज-सेवक और योगदा भक्त श्री रजनीकांत इस अवसर पर मुख्य अतिथि थे। चेन्नई का राघवेंद्र मण्डपम् हॉल, इस समारोह में शामिल होने वाले लगभग 1500 लोगों द्वारा पूर्णतया भर गया था। वाईएसएस की ओर से स्वामी स्मरणानन्द, शुद्धानन्द, पवित्रानन्द, ब्रह्मचारी निष्ठानन्द और निरन्जनानन्द ने इस समारोह में भाग लिया।

वाईएसएस स्वामीजी और एक अन्य भक्त के साथ श्री रजनीकांत (बाईं ओर से दूसरे)दिव्य प्रेम-लीला‘ पुस्तक के नए तमिल अनुवाद का प्रदर्शन करते हुए।

इस समारोह के दौरान स्वामी शुद्धानन्दजी ने बताया कि किस प्रकार गुरुदेव परमहंस योगानन्दजी ने वाईएसएस की शुरुआत 1917 में पश्चिम बंगाल के एक ग्राम दिहिका में केवल सात विद्यार्थियों के एक – “आदर्श जीवन” विद्यालय से की थी और आज यह एक विश्व व्यापी संस्था बन चुकी है; जिसमें लगभग 200 ध्यान केन्द्र भारत में हैं और प्राथमिक से स्नातकोत्तर स्तर के अनेकों शिक्षा संस्थान भी शामिल हैं।

स्वामी स्मरणानन्दजी ने अपने प्रवचन में बताया कि हम किस प्रकार ईश्वर के दिव्य प्रेम को दैनिक जीवन में अनुभव और व्यक्त कर सकते हैं। उन्होने स्पष्ट करते हुए कहा कि ईश्वर को अनुभव किया जाना चाहिए, चूँकि उनका प्रेम प्रतिक्षण, सर्वव्यापी है और उनको देख पाना अनिवार्य नहीं।.

मुख्य अतिथि श्री रजनीकांत ने दर्शकों को संबोधित करते हुए बताया कि किस प्रकार 1998 में योगी कथामृत पढ़ने के बाद वे अपने गुरु श्री श्री परमहंस योगानन्द को ढूँढ पाए। उस समय के बाद से उन्होंने गुरुजी की शिक्षाओं से अपने जीवन में होने वाले रूपांतरण को अनुभव किया है। ‘दिव्य प्रेम-लीला’ पुस्तक के बारे में उन्होंने कहा कि “मेरे जीवन काल की यह प्रथम पुस्तक है जिसका विमोचन मैं कर रहा हूँ। इस पुस्तक की विवेचना करते हुए मुझे जल्द ही यह ज्ञात हुआ की प्रत्येक पृष्ठ ही नहीं, अपितु प्रत्येक पंक्ति परमहंस योगानन्दजी के ज्ञान व प्रेम से सराबोर है।” ज़ोरदार तालियों से उनके इस संबोधन की प्रशंसा की गई। स्वामी शुद्धानन्द ने योगेश्वर कृष्ण की एक फ्रेम की हुई तस्वीर श्री रजनीकांत को भेंट की।

इस कार्यक्रम को प्रेस द्वारा व्यापक रूप से प्रिंट, टी. वी. और ऑनलाइन चैनेल्स पर कवर किया गया। इस कार्यक्रम के समापन के कुछ देर बाद ही ‘दिव्य प्रेम-लीला‘(तमिल) पुस्तक की लगभग 500 प्रतियों की बिक्री हुई। चालीस लोगों ने गुरुजी की शिक्षाओं के प्रति अपनी रुचि व्यक्त की और योगदा सत्संग पाठमाला के लिए पंजीकरण किया। हम उन सभी भक्तजनों का आभार व्यक्त करना चाहेंगे जिनके पूरे उत्साह व सेवा से इस कार्यक्रम का सफलता पूर्वक आयोजन किया जा सका।

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