“कैसे योग सम्पूर्ण विश्व के लिए एक विज्ञान है” परमहंस योगानन्द द्वारा

9 अक्टूबर, 2023

प्रस्तावना :

6 अक्टूबर, 1920 को परमहंस योगानन्दजी ने संयुक्त राज्य अमेरिका में बोस्टन में धार्मिक उदारवादियों की कांग्रेस में भारत के प्रतिनिधि के रूप में “धर्म विज्ञान” विषय पर अपना पहला प्रवचन दिया था।

परमहंसजी अपने प्रसिद्ध गुरुओं के आदेश पर दुनिया के सामने उत्कृष्ट आत्मा-विज्ञान — योग लाने के लिए, कुछ सप्ताह पहले ही आये थे। उनके द्वारा सिखाए गए योग ध्यान का विशिष्ट मूल्य उन ग्रहणशील विद्यार्थियों के लिए स्पष्ट होता गया जो इसकी विधियों को अभ्यास में लाये, और आधुनिक संसार को भारत के ज्ञान को समझाने के उनके तरीके की विश्व भर में तभी से उत्तरोत्तर सराहना की जा रही है।

जैसा कि अमेरिकी व्यवसायी राजर्षि जनकानन्द, जो एक सन्तवत योगी बन गए और वाईएसएस/एसआरएफ़ के अध्यक्ष के रूप में परमहंसजी के उत्तराधिकारी बने, ने कहा : “भारत, अपने महान् गुरुओं में से एक, परमहंस योगानन्द के रूप में, आत्म-साक्षात्कार का यह अमूल्य ज्ञान हमारे बीच लाया है।…भारत ने आज हमें परमहंसजी की शिक्षाओं के माध्यम से जो दिया है, उसके बदले में हम उसे जो कुछ भी दे सकें, उसकी तुलना में यह हमारे लिये कहीं अधिक मूल्यवान् है।”

क्या आप योग की गहरी समझ और यह सभी के लिए कैसे उपयोगी है, यह जानना चाहेंगे?

नीचे दिए गए परमहंसजी के उद्धरण, आत्मा के साथ मिलन के भारत के प्राचीन विज्ञान की सार्वभौमिक प्रकृति और परमहंसजी ने — संस्कृति, पंथ और समय की सीमित सीमाओं को पार करते हुए, इसे अमेरिका और विश्व तक पहुंचाकर क्या प्राप्त किया, इसकी एक झलक पेश करते हैं।

परमहंस योगानन्दजी के प्रवचन एवं आलेख से :

प्राचीन काल में भारत के ऋषियों द्वारा खोजा गया, विश्व के लिए भारत का अमूल्य योगदान, धर्म का विज्ञान है — योग, “दिव्य मिलन” — जिसके माध्यम से ईश्वर को एक धार्मिक अवधारणा के रूप में नहीं बल्कि एक वास्तविक व्यक्तिगत अनुभव के रूप में जाना जा सकता है।

योग में नश्वर शरीर और विचलित मन के साथ हमारी संकीर्ण पहचान से ऊपर उठने और शांत अनश्वर आत्मा के साथ अपनी पहचान बनाने की वास्तविक विधियाँ सम्मिलित हैं।

ये पद्धतियाँ केवल विशिष्ट प्रकार के या विशिष्ट स्वभावगुणों वाले व्यक्तियों, जैसे संन्यस्त जीवन की ओर झुकाव रखने वाले अत्यंत कम लोगों के लिए ही निर्धारित नहीं हैं।…योग-विज्ञान उस मूलभूत आवश्यकता की पूर्ति करता है जो सबके लिए एक समान होती है, अतः यह सबके लिए समान रूप से लागू होता है।

धर्म का विज्ञान सभी के लिए सामान्य सार्वभौमिक सत्य — धर्म के आधार — की पहचान करता है और सिखाता है कि कैसे उनके व्यावहारिक अनुप्रयोग से व्यक्ति ईश्वरीय योजना के अनुसार अपने जीवन का निर्माण कर सकते हैं। भारत की राजयोग की शिक्षा, आत्मा का “राजसी” विज्ञान, उन तरीकों के अभ्यास को व्यवस्थित रूप से स्थापित करके धर्म की रूढ़िवादिता को खत्म करता है जो जाति या पंथ की परवाह किए बिना हर व्यक्ति की पूर्णता के लिए सार्वभौमिक रूप से आवश्यक हैं।

जैसे विद्युत की खोज पश्चिम में हुई थी, और भारत में हम इससे लाभान्वित होते हैं; इसी प्रकार, भारत ने ऐसी विधियों को खोजा है जिनके द्वारा ईश्वर को जाना जा सकता है, तथा पश्चिम को उनसे लाभ उठाना चाहिए। प्रयोगों द्वारा भारत ने धर्म में सत्यों को सिद्ध किया है। भविष्य में, धर्म प्रत्येक स्थान पर प्रयोग का विषय रहेगा, यह मात्र विश्वास पर आधारित नहीं रहेगा।

इसे एक विज्ञान की भाँति प्रयोग करना सम्भव है, जिसे आप स्वयं पर प्रयोग करके सिद्ध कर सकते हैं। सत्य की खोज विश्व में सबसे अद्भुत खोज है।…आध्यात्मिक आदर्शों के अनुसार अपने जीवन को ढालना सीखें।

आत्मा आदर्श रूप से सम्पूर्ण है, परन्तु जब वह अहंकार के रूप में शरीर के साथ तादात्म्य कर लेती है, इसकी अभिव्यक्ति मानवीय दोषों द्वारा विकृत हो जाती है।… योग हमें स्वयं में तथा दूसरों में दिव्य प्रकृति को जानना सिखाता है। योग ध्यान के माध्यम से हम जान सकते हैं कि हम देवता हैं।

वाईएसएस वेबसाइट पर आप योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के अध्यक्ष और आध्यात्मिक प्रमुख स्वामी चिदानन्द गिरि का एक ब्लॉग पोस्ट पढ़ सकते हैं, जहाँ वह सार्वभौमिक आध्यात्मिकता के प्रमुख योगदानों को साझा करते हैं जो पश्चिम में 1920 में परमहंस योगानन्दजी अपने आगमन पर विश्व के लिए लाए थे। ये ऐसे क्रांतिकारी विचार हैं जो अभी भी जड़ें जमा रहे हैं और समय बीतने के साथ अधिक से अधिक लोगों के जीवन को बदल रहे हैं।

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