योगदा सत्संग सोसाइटी की गुरु परंपरा

भगवान् कृष्ण

सम्पूर्ण भारत में भगवान् कृष्ण को ईश्वर का अवतार मानकर श्रद्धापूर्वक पूजा जाता है। भगवान् कृष्ण की उदात्त शिक्षाएं श्रीमद्भगवद्गीता में अधिष्ठापित हैं।

जीसस क्राइस्ट

परमहंस योगानन्दजी के अत्यंत आवश्यक धार्मिक उद्देश्यों में से एक यह था कि “भगवान् कृष्ण द्वारा सिखाए गए मूल योग की और जीसस क्राइस्ट द्वारा दी गई ईसाई धर्म की मूल शिक्षाओं की पूर्णरूपेण एकता और साम्यता को प्रत्यक्ष रूप में प्रस्तुत करना। इसके द्वारा उनका लक्ष्य यह सिद्ध करना भी था कि इन दोनों धर्मों के सैद्धांतिक सत्य ही सभी धर्मों की वैज्ञानिक बुनियाद हैं।”

महावतार बाबाजी

महावतार बाबाजी ने ही लुप्त हो चुकी इस वैज्ञानिक क्रियायोग की तकनीक को इस युग में पुनर्जीवित किया है।

लाहिड़ी महाशय

महावतार बाबाजी ने उन्हें क्रियायोग के विज्ञान में दीक्षा दी और सभी शुद्ध और सच्चे साधकों को इस पवित्र तकनीक को प्रदान करने का निर्देश दिया।

स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि

श्रीयुक्तेश्वरजी लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे और ज्ञानावतार, या ज्ञान के अवतार होने के आध्यात्मिक शिखर को उन्होंने प्राप्त किया था।

परमहंस योगानन्द

परमहंस योगानन्दजी को अपनी गुरु परंपरा में सभी परमगुरुओं — महावतार बाबाजी, लाहिड़ी महाशय और अपने गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी  — द्वारा सम्पूर्ण विश्व में क्रियायोग के प्रसार के उच्च आदर्श को पूरा करने के लिए व्यक्तिगत रूप से आशीर्वाद प्राप्त था। 

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