आत्म-सम्मान का विकास — भीतर से बाहर तक विकसित करने पर, परमहंस योगानन्द के वचन

प्रस्तावना :

अपनी दैनिक गतिविधियों के दौरान, हम सभी को अपने आत्म-विश्वास और आत्म-सम्मान में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है।

कुछ बातें हैं जिन्हें हम अपने जीवन में सुधारना चाहते हैं — हम ऐसे माध्यम तलाशते हैं जिनसे हम अपने सर्वश्रेष्ठ को बेहतर ढंग से व्यक्त कर सकें। लेकिन तब शारीरिक, मानसिक या आध्यात्मिक रूप से — पूर्णता क्या है या कैसी दिखनी चाहिए — या हमें प्रशंसा या महत्त्व के लिए किस ओर देखना चाहिए, इस विषय पर हमें बाह्य जगत् की गलत धारणाओं का सामना करना पड़ सकता है।

जैसे ही हम जीवन की बाधाओं का सामना करते हैं, या यहाँ तक कि अपने स्वयं के आध्यात्मिक उद्देश्यों के प्रति भी, हम “आगे नहीं बढ़ रहे हैं” की गलत भावना ग्रहण करना सम्भव है।

लेकिन परमहंस योगानन्दजी हमें याद दिलाते हैं : “स्वयं को बेहतर बनाने का प्रयास करते समय भी, अपने गुणों और आत्म-सम्मान को सुरक्षित रखते हुए, अकेले खड़े रहना सीखें।”

सहस्राब्दियों से, महान जनों ने हमें बताया है कि ऐसा करने की क्षमता केवल एक ही स्थान से आती है — भीतर से, हमारे उच्च स्व से। अर्थात्, उस दिव्यता से सहायता, मार्गदर्शन और प्रेम मांगें जो हमसे अलग नहीं है, बल्कि हमारे अस्तित्व का सार है।

परमहंसजी हमें बताते हैं, “आप एक शाश्वत ज्वाला की चिंगारी हैं। आप चिंगारी को छिपा सकते हैं, लेकिन उसे कभी नष्ट नहीं कर सकते।”

क्या केवल इसे सुनने मात्र से ही आप अपने को उन्नत अनुभव नहीं करते हैं? क्या आप वास्तविक आत्म-विश्वास के साथ जीवन में आगे बढ़ने के लिए अधिक उत्साहवर्धक ज्ञान को आत्मसात करना चाहेंगे?

परमहंस योगानन्दजी के व्याख्यानों और लेखन से :

प्रत्येक छोटे बल्ब के प्रकाश के पीछे एक प्रबल वेगवान् विद्युतधारा है; प्रत्येक छोटी लहर के नीचे विशाल सागर है, जोकि अनेक लहरें बन गया है। ऐसा ही मनुष्यों के साथ भी है।

उस छोटी लहर की ताकत को कम मत आंकिए जो बड़ी लहरों से टकरा गई है। किसी को इससे यह कहना चाहिए, “छोटी लहर, तुम्हें क्या हो गया है? क्या तुम्हें अनुभूति नहीं है कि पूरा सागर तुम्हारे पीछे है? तुम विशाल महासागर में उफान हो।” अपने छोटे शरीर को नहीं, बल्कि अपने भीतर देखें।

आप जो भी हैं, सभी वस्तुओं से अथवा किसी अन्य व्यक्ति से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं जिसकी आपने कभी कामना की है। ईश्वर ने आप में स्वयं को इस प्रकार व्यक्त किया है जिस प्रकार वे अन्य किसी मानव में व्यक्त नहीं हुए। आपका चेहरा किसी भी अन्य व्यक्ति के चेहरे से भिन्न है, आपकी आत्मा किसी भी अन्य व्यक्ति की आत्मा से भिन्न है, आप अपने आप में पर्याप्त हैं; क्योंकि आपकी आत्मा में किसी भी निधि से महानतम निधि विद्यमान है — ईश्वर।

अपने भीतर ईश्वर को अनुभव करके, अपनी नश्वर निर्बलताओं पर और वास्तविक बढ़ती उपलब्धियों पर विजय पाने के आधार पर एक दिव्य, विनम्र आत्म-विश्वास विकसित करें — इस चेतना को धारण करते हुए कि आपकी सभी उपलब्धियाँ उस शक्ति से आती हैं जो आपने ईश्वर से उधार ली है। इस प्रकार आप सभी हीन भावनाओं और श्रेष्ठता की भावनाओं से मुक्त हो जाएंगे।

[अभ्यास करने के लिए एक प्रतिज्ञापन]: “मैंने अपनी मृत निराशाओं को बीते हुए कल के श्मशानों में गाड़ दिया है। आज मैं अपने नए रचनात्मक प्रयासों से जीवन की बगिया जोतूंगा। उसमें मैं ज्ञान, स्वास्थ्य, समृद्धि और प्रसन्नता के बीज बोऊंगा। मैं उन्हें आत्म-विश्वास और निष्ठा से सींचूंगा, और ईश्वर मुझे उचित फसल प्रदान करें, इसकी प्रतीक्षा करूँगा।”

वाईएसएस ब्लॉग पर पढ़ना जारी रखें, जहाँ आप पढ़ सकते हैं “योगी आत्म-सम्मान के स्रोत से कैसे संपर्क करते हैं” — योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के अध्यक्ष और आध्यात्मिक प्रमुख स्वामी चिदानन्द गिरि द्वारा, रचित लेख “भौतिक संसार में रहते हुए अपने दिव्य संबंध को बनाए रखना” का एक अंश, जिसे आगामी 2023 योगदा सत्संग पत्रिका में प्रकाशित किया जाएगा।

 

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