प्रतिकूल परिस्थितियों में पराक्रम परमहंस योगानन्दजी द्वारा

8 अप्रैल, 2020

अप्रैल मासिक समाचार पत्र से प्रेरणादायक विचार

प्रतिकूल परिस्थितियों में स्वयम् को कैसे सुदृढ़ किया जाए, ईश्वर की चेतना व उनके संरक्षण पर गहन आस्था कैसे विकसित की जाए’ पर इस माह हम आपसे परमहंस योगानन्दजी के सुविचार साझा कर रहे हैं।

[वाईएसएस/एसआरएफ़ अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द गिरिजी द्वारा हाल ही में दिए प्रवचन : “स्वामी चिदानन्द गिरिजी द्वारा संचालित ध्यान — आध्यात्मिक आश्वासन पर एक संदेश” की वीडियो में उन्होंने अनेक सत्य वचनों को उद्धृत किया, जिनसे इस समय में संतुलन व बल खोज रहे उन सभी जिज्ञासुओं को परमहंस योगानन्दजी के व्यावहारिक व प्रोत्साहित करने वाले ज्ञान से लाभ मिला।]

प्रत्येक वस्तु जिसकी रचना ईश्वर ने की है हमारे परीक्षण के लिए की है, हमारे भीतर दबी हुई आत्मा की अमरता को प्रकट करने के लिए। यही जीवन का साहसिक कार्य है, जीवन का एक मात्र उद्देश्य। और प्रत्येक व्यक्ति का साहसिक कार्य भिन्न है, अद्वितीय है। आपको व्यावहारिक-बुद्धि की युक्तियों और ईश्वर में विश्वास के द्वारा स्वास्थ्य, मन और आत्मा की समस्त समस्याओं का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, इस बात का ज्ञान रखते हुए कि जीवन अथवा मृत्यु में आपकी आत्मा अजेय रहती है।

जीवन के द्वारा स्वयं को कदापि परास्त न होने दें; बल्कि जीवन को पराजित कर दें! यदि आपकी इच्छाशक्ति बलशाली है तो आप समस्त कठिनाइयों पर विजय पा सकते हैं। परीक्षणों के बीच भी प्रतिज्ञापन करें : "ख़तरा और मैं साथ-साथ पैदा हुए थे, और मैं ख़तरे से अधिक ख़तरनाक हूँ!” यह सत्य है, जिसे आपको सदा स्मरण रखना चाहिए; इसे प्रयोग करें और आप देखेंगे कि यह प्रभावकारी है। दासवत् नश्वर मानव की तरह व्यवहार न करें। आप ईश्वर की सन्तान हैं!

सर्वाधिक मैं इस बात पर ज़ोर देना चाहूँगा कि, ध्यान द्वारा परमात्मा की खोज करने में स्वयं को व्यस्त करें।… इस जीवन के प्रतिबिम्ब के ठीक पीछे परमात्मा का अद्भुत प्रकाश दीप्तिमान है। यह सृष्टि उनकी उपस्थिति का एक विशाल मन्दिर है। जब आप ध्यान करेंगे तो पाएँगे कि सभी द्वार परमात्मा की ओर ही खुलते हैं और जब आप उनके सान्निध्य में होते हैं तो संसार का विनाश भी उनकी शांति व परमानन्द को नष्ट नहीं कर सकता।

भय हृदय से उत्पन्न होता है। जब कभी आप किसी बीमारी अथवा दुर्घटना के भय पर विजय पाना चाहें, तो आपको गहरे, धीरे-धीरे, और लय के साथ कई बार साँस लेने और छोड़ने चाहिए, और प्रत्येक बार साँस छोड़ने के पश्चात् थोड़ा-सा विश्राम करना चाहिए। यह रक्त के संचार को सामान्य करने में सहायता करता है। यदि आपका हृदय वास्तव में शान्त है तो आप बिल्कुल भी भय का अनुभव नहीं कर सकते।

प्रतिज्ञापन : “मैं आपकी प्रेममयी देखभाल के सुरक्षा-दुर्ग में सदा सुरक्षित हूँ।”

स्वामी चिदानन्दजी की उपरोक्त वीडियो के अतिरिक्त वाईएसएस द्वारा अन्य ऑनलाइन साधन भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं, जिनके द्वारा हम इस विश्वव्यापी कठिन समय में अपने भीतर एक आश्रय व निर्भयता को महसूस कर सकें। इनमें ऑनलाइन सामूहिक ध्यान सत्र का सीधा प्रसारण, वाईएसएस/एसआरएफ़ संन्यासियों द्वारा हर सप्ताह प्रेरणाप्रद प्रवचन व अन्य सेवाएँ शामिल हैं। हमारे न ब्लॉग पोस्ट “वर्तमान वैश्विक परिस्थिति से जूझने के लिए हमारी साइट पर उपलब्ध ऑनलाइन साधन” लिंक का प्रयोग कर आप स्वामी चिदानन्दजी के संदेश व अन्य सेवाओं का लाभ ले सकते हैं :

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