वाईएसएस शताब्दी समारोह

4 अप्रैल, 2017

22 मार्च, 2017 को योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया का शताब्दी समारोह मनाया गया।

राँची में 19 से 23 मार्च तक, शताब्दी समारोह मनाया गया, जिसमें लगभग 1500 भक्तों ने पाँच दिन चलने वाले इस कार्यक्रम में भाग लिया। इस कार्यक्रम के दौरान परमहंसजी द्वारा प्रतिपादित, ध्यान के वैज्ञानिक सिद्धांतों व “आदर्श जीवन” जीने की कला के आध्यात्मिक सिद्धांतों पर कक्षाओं का संचालन किया गया। प्रतिदिन, सुबह व शाम सामूहिक ध्यान के साथ कीर्तन/चैंटिंग के लंबे सत्रों का संचालन और क्रियायोग की प्राचीन विधि की दीक्षा भी दी गयी।

Sannyasis of YSS and SRF during Sharad sangam in Ranchi.

19 मार्च, शताब्दी उत्सव का आरंभ, वाईएसएस व एसआरएफ़ के वरिष्ठ संन्यासियों द्वारा एकत्रित भक्तों को प्रार्थना निर्देशन द्वारा किया गया।

वाईएसएस की शुरुआत 1917 में, पश्चिम बंगाल के गाँव दिहिका में, एक छोटे से आश्रम व बालकों के विद्यालय से हुई। एक वर्ष पश्चात परमहंसजी व उनके विद्यार्थी राँची (अब झारखंड राज्य की राजधानी) आ गए, जहाँ उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की, जो आज इस उन्नत आध्यात्मिक संस्था का मुख्य केंद्र है। परमहंसजी द्वारा स्थापित संन्यासी संप्रदाय के नेत्रित्व में, वाईएसएस में आज संपूर्ण भारत से हज़ारों सदस्य व सैंकड़ों ध्यान मंडलियाँ शामिल हैं।

1920 में, अपने गुरु जनों की आज्ञा अनुसार परमहंसजी योग के विज्ञान को अमेरिका लेकर आए, जहाँ उन्होंने अपनी शिक्षा के विश्वव्यापी प्रसार हेतु, सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (एसआरएफ़) की स्थापना की।

7 मार्च 2017 को, भारत सरकार द्वारा वाईएसएस शताब्दी के उपलक्ष्य में एक संस्मारक डाक टिकट का विमोचन किया गया। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने, परमहंसजी व उनकी संस्था के सम्मान में स्वयं नई दिल्ली में इस डाक टिकट का विमोचन किया।

Mrinalini Mata in her later years.

वाईएसएस/एसआरएफ़ संघमाता का आशीर्वाद

राँची समारोह की शुरुआत 19 मार्च को, अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय लॉस एंजेल्स, एसआरएफ़ से आए, स्वामी विश्वानन्दजी द्वारा की गयी। वे वाईएसएस/एसआरएफ़ निदेशक मंडल के सदस्य भी हैं। उन्होंने वाईएसएस/एसआरएफ़ की चतुर्थ अध्यक्ष व संघमाता श्री मृणालिनी माताजी के संदेश से कुछ शब्द साझा किये, जिन्होंने सभी भाग लेने वालों को अपना प्रेम व आशीर्वाद टेलिफोन द्वारा उसी दिन कुछ समय पूर्व संप्रेषित किया था। इस समारोह का उद्घाटन उनके द्वारा लिखित संदेश को पढ़ कर किया गया (संपूर्ण लेख नीचे पढ़ें)। इसके पश्चात वाईएसएस के जनरल सेक्रेटरी स्वामी स्मरणानन्दजी ने प्रेरणाप्रद प्रवचन दिया।

वाईएसएस के जन्म स्थल की तीर्थ यात्रा

Devotees in Dihika.

Devotees around the pond in Dihika ashram.

राँची से दिहिका तक की तीर्थ यात्रा भी प्रमुख थी, जिसमें वाईएसएस द्वारा भारतीय राज्य रेल कंपनी के सहयोग से व्यवस्थित की गई एक विशेष रेल में, लगभग 1200 भक्तों ने चार घंटे की यात्रा तय की। 500 भक्त दिहिका में साथ जुड़े, जहाँ अब परमहंसजी के शुरुआती विद्यालय के स्थल पर वाईएसएस ध्यान केंद्र व रिट्रीट सेंटर बनाया गया है। इस उल्लासजनक एक दिवसीय कार्यक्रम में विभिन्न गतिविधियाँ मुख्य रहीं जैसे कि, रेलवे स्टेशनों से निकाली गईं शोभायात्राएँ, रेल गाड़ी में और दिहिका केंद्र में सामूहिक ध्यान व भक्तिमय चैंटिंग, स्वामी स्मरणानन्दजी व स्वामी विश्वानन्दजी द्वारा प्रेरणाप्रद सत्संग, भक्तों को स्वादिष्ट भोजन के साथ, कुछ समय एक एकड़ भूमि में विस्तृत आश्रम के सुंदर वातावरण का आनंद लेने का समय भी दिया गया। यादगार के तौर पर सभी को वाईएसएस के शताब्दी उत्सव के प्रथम दिन के कवर वाली डाक टिकट भेंट की गई।

झारखंड के उच्चतम अधिकारियों की उपस्थिति

Sri Raghubar Das — Chief minister of Jharkhand, meditating with Yogoda Monks.

Main building of Yogoda Math, Ranchi.

22 मार्च 2017, शताब्दी उत्सव के उपलक्ष्य में, वाईएसएस राँची आश्रम के प्रशासनिक भवन की इमारत को विशेष तौर पर रौशन किया गया, इसी भवन में परमहंसजी का निवास था और यहीं वे शिक्षा प्रदान किया करते थे।

22 मार्च का दिन वाईएसएस द्वारा प्रति वर्ष ‘संस्थापक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है और इस वर्ष शताब्दी समारोह के चलते, एक विशेष संध्या कार्यक्रम का आयोजन किया गया। झारखंड के मुख्य मंत्री श्री रघुबर दास, इस कार्यक्रम के माननीय मुख्य अतिथि रहे। वाईएसएस के जनरल सेक्रेटरी स्वामी स्मरणानन्दजी द्वारा प्रेरणाप्रद सत्संग व सामूहिक ध्यान के पश्चात मुख्य मंत्रीजी ने भारत व विदेशों में परमहंसजी की संस्था द्वारा आध्यात्मिक व भौतिक उन्नति के सामंजस्य की स्थापना हेतु किए जा रहे प्रयासों के महत्व के बारे में बात की।

इस कार्यक्रम के अंतिम दिन परमहंस योगानन्दजी की शिक्षा के उच्चतम पहलू पर ध्यान केंद्रित करते हुए, अनेक भक्तों ने क्रियायोग की दीक्षा ग्रहण की। हिन्दी व अंग्रेज़ी दोनो भाषाओं में दीक्षा समारोह संचालित किए गए। दिन ढलते हुए, वाईएसएस संन्यासियों ने घर लौटने वाले भक्तों को विदाई दी, जिन्हें परमहंसजी के आध्यात्मिक कार्यों के इतिहास में, इस गौरवमय अनुष्ठान में सम्मिलित होने का सुअवसर मिला, तथा आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण हो कृतज्ञ भाव से वे वापिस अपने घर लौटे।

दिहिका की तीर्थ यात्रा और राँची में शताब्दी समारोह की फोटो एलबम देखने के लिए हम आपको वाईएसएस वेबसाइट पर आने हेतु निमंत्रण देते हैं।

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया शताब्दी समारोह के अवसर पर श्री मृणालिनी माताजी का संदेश :

प्रिय आत्मन्

मेरा हृदय अत्यन्त आनंदित हो रहा है कि हम सब एक साथ मिलकर अपने प्रिय गुरुदेव परमहंस योगानन्दजी की योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया की स्थापना का यह मंगलमय शताब्दी वर्ष मना रहे हैं। मैं आप सभी को अपनी प्रेमपूर्ण शुभकामनाएं तथा ईश्वर के आशीर्वाद प्रेषित करती हूँ, और भारत एवं सम्पूर्ण विश्व के लिए हमारे पूज्य गुरु के योगदान तथा उनका सम्मान करने के लिए अत्यधिक प्रेम एवं जतन से तैयार किए गए अनेक सुन्दर कार्यक्रमों का ध्यान से अवलोकन करते हुए आत्मिक रूप से आपके साथ हूँ। जब मैं सोचती हूँ कि कैसे गुरुजी की योगदा सत्संग सोसाइटी, दिहिका में प्रारम्भ हुए एक छोटे-से “आदर्श जीवन” बाल विद्यालय से बढ़कर बड़े-बड़े आश्रमों वाली एक संस्था में, एक जीवन्त और निरन्तर बढ़ते संन्यासी संप्रदाय में, तथा भारत भर में दो सौ से भी अधिक ध्यान केन्द्रों और इसके साथ-ही-साथ अनेक शैक्षणिक संस्थाओं एवं सेवा कार्यों में बदल गई है, तो मैं इससे गुरुजी को होने वाले अपार आनन्द का अनुभव करती हूँ। यह निश्चित जानिये कि इस उल्लासकारी शताब्दी वर्ष के दौरान वे सभी भक्तों पर वस्तुतः सारे भारत पर अपना दिव्य प्रेम एवं आशीर्वाद बरसा रहे हैं, तथा अपनी आत्मा की गहराई से उस प्रत्येक व्यक्ति की सराहना कर रहे हैं जिसके प्रयासों का इस प्रगति में योगदान रहा है।

वाईएसएस की छोटी-सी शुरूआत से अब तक सौ वर्षों में, गुरुदेव को दिव्य प्रेम के एक परिपूर्ण अवतार के रूप में जाना गया है — एक नवीन युग का सूत्रपात करने वाले जगद्गुरु जिन्होंने विश्व को रूपान्तरित करने के उद्देश्य से ही जन्म लिया था। ईश्वर ने उन्हें हमारी आत्मा की प्रगति तथा मानवता के आरोही क्रम-विकास को द्रुत करने हेतु आधुनिक युग के लिए एक विशेष साधन, पवित्र क्रियायोग विज्ञान, के प्रसार का उत्तरदायित्व प्रदान किया था। अपने प्रथम “आदर्श जीवन” विद्यालय की स्थापना के मात्र तीन वर्ष बाद ही, गुरुजी को राँची में हुए एक दिव्य दर्शन में स्पष्ट हुआ कि इस विशाल कार्य को प्रारम्भ करने के लिए उनके अमेरिका जाने का समय निकट आ गया है। यद्यपि इसके बाद पश्चिम में रहना उनके लिए पूर्वनिर्धारित था, फिर भी उनकी सर्वव्यापी चेतना तथा हृदय में भारत सदा ही बना रहा। अपनी My India कविता में उन्होंने लिखा है : “मैं भारत से इसलिए करता हूँ प्रेम क्योंकि मैंने जाना प्रथम वहीं ईश्वर और सभी सुन्दर वस्तुओं से प्रेम करना।” उन्होंने भारत में अपना यह विशिष्ट कार्य प्रारम्भ किया, और अपनी मातृभूमि को श्रद्धापूर्ण शब्दांजली अर्पित करते हुए अपने भौतिक शरीर का त्याग किया — परन्तु उनकी आत्मा और भारत- प्रेरित कार्य अमर रहेगा।

पश्चिम में अपने कार्य को स्थापित करने से संबंधित असंख्य उत्तरदायित्त्वों के बाद भी, भारत में वाईएसएस तथा अपने शिष्यों के कल्याण हेतु उनकी प्रेमपूर्ण चिन्ता अपरिवर्तित ही रही। जब 1935-36 में ईश्वर ने उन्हें भारत लौटने का अवसर प्रदान किया, तो उन्होंने सारे देश में प्रवचन दिए और वाईएसएस के पोषण के लिए तथा इसके भविष्य को सुरक्षित करने के लिए वह प्रत्येक कार्य किया जो वे कर सकते थे। मैंने अनेक बार उन्हें फिर से अपने भारत लौटने की उम्मीद को प्रकट करते सुना। परन्तु जब अपने अन्तिम दिनों से पूर्व, उन्होंने देखा कि यह जगन्माता की इच्छा नहीं है, तो उन्होंने श्री दया माताजी को भारत में अपने कार्य की ठीक उसी प्रकार देखभाल करने का उत्तरदायित्व सौंपा जैसा वे स्वयं करते। श्री दया माताजी ने अपने पूरे हृदय से उस पावन विश्वास को पूर्ण किया, और भक्तों के लिए प्रेममयी जगन्माता की सच्ची प्रतिमूर्ति बनकर गुरुदेव के साथ अपनी चेतना की पूर्ण समस्वरता से उन्हें प्रेरित किया। उस उच्च अवस्था से उन्होंने पचास से भी अधिक वर्षों तक गुरुजी के आदर्शों तथा इच्छा के अनुसार वाईएसएस का मार्गदर्शन किया और इसका पोषण करते हुए इसे इसका वर्तमान स्वरूप प्रदान किया। हम हँस स्वामी श्यामानन्द द्वारा उन्हें दी गई अमूल्य सहायता के लिए उनके कृतज्ञ हैं, श्री दया माताजी के तथा अन्य अनेक निष्ठावान योगदा भक्तों के प्रयासों को सफल बनाने में उनके समर्पण की अहम् भूमिका रही है — यहाँ उन सब भक्तों के नामों का उल्लेख सम्भव नहीं, किन्तु उन सबका हमारे हृदयों में विशेष स्थान है।

मुझे दया माताजी के साथ उनकी अनेक भारत यात्राओं पर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। सभी अत्यन्त उत्कृष्ट योगदा भक्तों में प्रतिबिम्बित ईश्वर के प्रति शुद्ध, सच्ची भक्ति को, जोकि भारत की विशिष्ट धरोहर है, मैंने भी दया माताजी की तरह ही, संजो कर रखा है। गुरुजी की मातृभूमि की वे तथा उसके बाद की सभी यात्राएँ मेरी सर्वाधिक बहुमूल्य स्मृतियों में हैं, जो कि मेरे हृदय तथा मन पर अमिट रूप से अंकित हैं। मैं अक्सर उन्हें याद करती हूँ, और एक भी दिन ऐसा नहीं बीतता जब मैं भारत में गुरुदेव के शिष्यों के लिए, योगदा सत्संग सोसाइटी के कार्य के लिए, तथा उन सबके लिए अपनी गहनतम प्रार्थनाएँ न भेजूँ जो उनके इस विशिष्ट कार्य को आगे बढ़ाने के लिए इतना कुछ कर रहे हैं। जब मैं योगदा गतिविधियों से संबंधित फ़ोटो देखती हूँ, तो मैं इतनी बड़ी संख्या में एकत्र इन उत्कृष्ट आत्माओं को देखकर रोमांचित हो जाती हूँ, जो कि गुरुदेव की शिक्षाओं का गहन अभ्यास करने के लिए इतनी अधिक उत्साहित हैं — जो ध्यान करने और उनके ज्ञान को ग्रहण करने लिए नियमित रूप से एकत्र होते हैं, और असंख्य तरीकों से उनके कार्य में आनंदपूर्वक अपनी सेवा प्रदान करते हैं। मुट्ठी भर भक्त आज ईश्वर तथा गुरु के प्रेम में एकजुट एक विशाल परिवार बन गए हैं।

गुरुदेव की अपने शिष्यों के कल्याण एवं उन्नति में आज भी उतनी ही रुचि है, जितनी की उस समय थी जब वे हमारे बीच थे, और जब वे आपमें से प्रत्येक व्यक्ति को उनकी ध्यान-प्रविधियों का पूरे मन से अभ्यास करके तथा जगन्माता को प्रसन्न करना ही अपने जीवन का एकमात्र ध्येय बनाकर प्रगति करते देखते हैं तो यह बात उन्हें सबसे अधिक प्रसन्न करती है। जब वे आपकी आध्यात्मिक समझ को परिपक्व होते तथा आपको ईश्वर के साथ एक अधिक गहन एवं मधुर संबंध विकसित करते देखते हैं तो अत्यन्त आनंदित होते हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि आप सर्वोच्च को प्राप्त करें। एक सर्वश्रेष्ठ श्रद्धांजली जो आप उन्हें अर्पित कर सकते हैं, वह है एक इस प्रकार का भक्त बनना जो ईश्वर-प्रेम तथा सेवा के उन दिव्य आदर्शों का अधिकाधिक ज्वलंत उदाहरण बने जिन पर 100 वर्षों पूर्व गुरुदेव ने इस कार्य की आधारशिला रखी थी।

परमहंसजी के सन्देश ने इसलिए इतने अधिक लोगों को प्रभावित किया है क्योंकि वे आत्मा की एकीकृत करने वाली भाषा — दिव्य प्रेम तथा शाश्वत सत्य की भाषा — में बात करते हैं। उनकी शिक्षाएं तथा ईश्वर के प्रति उनके गहन प्रेम का चुम्बकत्व सांस्कृतिक, जातीय, राष्ट्रीय तथा धार्मिक असमानताओं के सभी अवरोधों के परे जाता है। गुरुदेव ने हमें बताया है कि वाईएसएस/एसआरएफ़ का प्रभाव एक मन्द पवन की तरह प्रारम्भ होगा और धीरे-धीरे एक प्रचण्ड वायु बन जाएगा जो ईश्वर की सन्तानों के जीवन से अँधकार को हटाने में सहायक होगा। इस शताब्दी वर्ष में हम न केवल इसके प्रारम्भ का बल्कि अच्छाई लाने वाली उस शक्ति में वृद्धि का उत्सव मना रहे हैं। आने वाली शताब्दी में इसके आध्यात्मिक रूप से परिवर्तनकारी प्रभावों का और अधिक गति पकड़ना तय है। गुरुजी ने अपनी वाईएसएस/ एसआरएफ़ संस्था की स्थापना पूर्व और पश्चिम की एकता के अपने आदर्श को मूर्त रूप देने तथा अपने प्रेम एवं ज्ञान के एक शाश्वत, शुद्ध माध्यम के रूप में की है और में प्रार्थना करती हूँ कि उस पवित्र विरासत को केन्द्र बनाकर अपने जीवन का निर्माण कर रहे आप सभी के प्रयासों को उनके आशीर्वाद प्राप्त हों। उन प्रयासों के फलस्वरूप आने वाले जिस आन्तरिक रूपान्तरण तथा आनन्दपूर्ण उत्साह को मैंने आपके चेहरों में देखा है, वह इन दिव्य शिक्षाओं की कालजयी शक्ति का सबसे बड़ा प्रमाण है और भविष्य में भी उनके कार्य को ऊर्जा प्रदान करता रहेगा। जय गुरु !

Unceasing blessings in God and Gurudeva,

श्री मृणालिनी माता

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