“पूर्णता की खोज” — एक कहानी

10 जनवरी, 2023

एक पारंपरिक कहानी का पुनर्प्रस्तुतीकरण जो इस बारे में बताता है कि परिपूर्णता कैसे बुद्धिमानी और देखभाल के निर्देशन में लिए गए कई छोटे कदमों के बाद ही प्राप्त होती है।

महान् शिल्पी ने अनिच्छापूर्वक अपनी हथौड़ी और छेनी रख दी और यह देखने के लिए गया कि इतनी रात गए स्टूडियो में मुझसे मिलने के लिए कौन आया है।

दरवाज़ा खोलने पर उसने देखा कि पूर्णिमा की चाँदनी में उसका एक परिचित खड़ा उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। शिल्पी ने चुपचाप उसका अभिवादन किया और अपने कार्यस्थल की ओर लौट पड़ा। उसका मित्र भी उसके पीछे-पीछे चला। उसने कहा, “कई दिनों से हम लोगों ने तुम्हें देखा नहीं। तुम अब तक उस मूर्ति के निर्माण में ही तो नहीं लगे हुए हो?”

उसके प्रश्न का कोई उत्तर न देकर शिल्पी अपने मित्र को उस उत्कृष्ट कलाकृति के पास ले गया, जिस के निर्माण के लिए उसने महीनों परिश्रम किया था। उस कलाकृति को देखकर उसका मित्र चुप हो गया। अन्त में उसने धीरे से कहा, “मानव भावना की इतनी भव्य अभिव्यक्ति तुमने इससे पहले कभी तराशी नहीं थी। तुम्हारी अब तक की कृतियों में से यह सर्वोत्तम कृति है।”

शिल्पी ने कहा, “मेरे विचार से, जब यह पूरी हो जाएगी तब वैसी ही होगी जैसी तुम सोच रहे हो। लेकिन इस पर मुझे अभी काफी काम करना है। इसका परिधान ठीक नहीं लगता — इस मांसपेशी को कुछ और उभारना होगा; और मुखाकृति को कुछ और मृदुलता प्रदान करनी होगी।”

“किन्तु ये सब तो छोटी-छोटी बातें हैं!” मित्र ने कहा।

अपने मित्र की ओर मुखातिब होते हुए शिल्पकार ने कहा, “आह, ये छोटी-छोटी बातें ही पूर्णता प्रदान करती हैं, और पूर्णता कोई छोटी बात नहीं होती।”

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