“एक श्रेष्ठतर जीवन, नववर्ष के प्रवेश द्वार से” — परमहंस योगानन्दजी द्वारा एक निर्देशित ध्यान

10 जनवरी, 2023

यह “अपने भाग्य पर नियन्त्रण प्राप्त करना” वार्ता का एक अंश है। पूरी वार्ता परमहंस योगानन्दजी के संकलित प्रवचन एवं आलेख के भाग-2 दिव्य प्रेम लीला, में पढ़ी जा सकती है।

नववर्ष के प्रारम्भ के साथ, आइए हम सब एकाग्रित आध्यात्मिक दृढ़ निश्चय के साथ अपने जीवन के नए युग में प्रवेश करें।

कृपया मेरे साथ प्रार्थना करें : “हे परमपिता, हम नववर्ष के प्रवेश द्वार के माध्यम से एक श्रेष्ठतर जीवन में प्रवेश कर रहे हैं। आशीर्वाद दें कि यह आप, जो सभी उपहारों के दाता हैं, के साथ सम्पर्क का एक महानतम वर्ष हो। हमारी समस्त कामनाओं के सिहंसन पर, हमारी बुद्धि के माध्यम से हमारे जीवन का निर्देशन करते हुए, आप ही एकमात्र सम्राट विराजमान रहें।

पिछले वर्ष में इच्छाओं ने प्रायः हमें मार्ग से भटका दिया था। हमें आशीर्वाद दें। कि अब से आगे के लिए हमारी सभी अभिलाषाएं आपकी इच्छा के साथ तालमेल एवं सामञ्जस्य में हों। हमें आशीर्वाद दें कि शारीरिक, मानसिक, नैतिक, तथा आध्यात्मिक रूप से प्रत्येक दिन आपकी चेतना में एक नई जागृति हो।

“हे परमपिता, हम आपका तथा उन महान् गुरुओं का धन्यवाद करते हैं, जो सभी हमें आशीर्वाद दे रहे हैं तथा हमें आपके साम्राज्य में आने के लिए लुभा रहे हैं। ओम्। ओम्। आमेन।”

यह आपके लिए मेरी नववर्ष की कामना है : कि आप सभी अपने सपनों से परे के देश में पहुँचे, जहाँ शान्ति तथा शाश्वत आनन्द है। ईश्वर करें जो कोई भी प्रबल शुभकामना आप आकाश में छोड़ते हैं, आप उसकी पूर्ति अनुभव करें।

आइए ध्यान करें : गत वर्ष की सुन्दर घटनाओं के विषय में सोचिए। नकारात्मक अनुभवों को भूल जाइए। उस भलाई को, जो अतीत में आपने की थी, नववर्ष की स्वच्छ भूमि पर बोइए, ताकि वे महत्त्वपूर्ण बीज और भी श्रेष्ठतर ढंग से उग सकें।

सभी पिछले दुःख समाप्त हो गए हैं। सभी पिछली कमियाँ भूलाई जा चुकी हैं। जो प्रियजन मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं, वे अनश्वर रूप से ईश्वर में रह रहें हैं। हम अब शाश्वत जीवन में हैं। यदि हम यह अनुभव कर लें तो हम कदापि मृत्यु से परिचय नहीं करेंगे। सागर में लहरें उठती और गिरती हैं; जब वे अदृश्य हो जाती हैं, तो भी वे सागर के साथ एक हैं। ऐसे ही सभी वस्तुएं ईश्वर की उपस्थिति के सागर में हैं।

भयभीत होने की कोई बात नहीं है। मन की प्रत्येक अवस्था को ईश्वर के साथ संयुक्त करें। जब लहर स्वयं को सागर से पृथक कर लेती है, केवल तब ही वह अलग और खोई हुई अनुभव करती है। शाश्वत जीवन (ईश्वर) के साथ अपने सम्बन्ध के विषय में निरन्तर सोचें, और सर्वोच्च सम्पूर्ण शाश्वत प्रभु के साथ आप अपनी एकरूपता को जान लेंगे।

जीवन और मृत्यु केवल अस्तित्व के भिन्न-भिन्न पहलू हैं। आप शाश्वत जीवन का एक अंग हैं। ईश्वर में अपनी चेतना को जाग्रत और विस्तारित करें ताकि आपकी स्वयं के विषय में अवधारणा छोटे-से शरीर तक सीमित न रहें। इस पर ध्यान करें। ध्यान में इसे अनुभव करें।

आपकी चेतना की कोई परिधि नहीं है। लाखों मील आगे देखिए, कोई अन्त नहीं है। बाएँ, ऊपर, और नीचे देखिए : कहीं अन्त नहीं है। आपका मन सर्वव्यापी है, आपकी चेतना असीम है।

मेरे साथ प्रार्थना करें : “परमपिता, मैं गत वर्ष की चेतना से अब नहीं बँधा हूँ। मैं शरीर की जकड़ी हुई चेतना से स्वतन्त्र हूँ। मैं शाश्वत हूँ। मैं अपने से ऊपर और नीचे, बाँई ओर, दाँई ओर, सामने, पीछे तथा चारों ओर अनन्तता की शून्यता में सर्वव्यापी हूँ। आप और मैं एक हैं।

“हे परमपिता, आपको, गुरुजी को, और सभी धर्मों के सन्त महानुभावों को, हम प्रणाम करते हैं। तथा प्रत्येक राष्ट्र की सभी आत्माओं को हम प्रणाम करते हैं, क्योंकि वे आपके प्रतिबिम्ब में बनी हैं। नववर्ष में, हम भूमण्डल के सभी राष्ट्रों के लिए शान्ति की कामना करते हैं। आपके पितकृत्व के अधीन वे अपने सार्वजनिक भ्रातकृत्व को अनुभव करें।

“उन्हें इस ज्ञान का आशीर्वाद दें कि वे लड़ना छोड़ दें तथा इस पृथ्वी पर एक स्वर्ग का निर्माण करने के लिए एक दूसरे के साथ शान्तिपूर्वक रहें। और हम सभी को आशीर्वाद दें कि हम अपने जीवन का आध्यात्मिक रूप से पुनर्गठन करके, तथा उदाहरण द्वारा दूसरों को वैसा ही करने हेतु प्रेरित करके हम यहाँ आपके स्वर्ग का निर्माण करने में सहायता कर सकें।

“हे परमपिता, हम आपको प्रेम करते हैं, तथा हम सभी मानव-वर्गों को अपने बन्धुओं के रूप में प्रेम करते हैं। हम सभी प्राणियों से प्रेम करते हैं, क्योंकि वे आप (ईश्वर) के जीवन को दर्शाते हैं। प्रत्येक वस्तु में विराजमान आपको हम प्रणाम करते हैं।

“परमपिता, हमें इस नववर्ष में शक्तिशाली बनाएं, सदैव आपकी सतत उपस्थिति द्वारा मार्गदर्शित रहें, ताकि हम शरीर, मन और आत्मा में, आपके जीवन, स्वास्थ्य, समृद्धि एवं प्रसन्नता को प्रतिबिम्बित कर सकें। आपकी सन्तान के रूप में, हम भी सम्पूर्ण बन सकें जैसे आप सम्पूर्ण हैं। ओम्। शान्ति। ओम्।”

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