गुरु पूर्णिमा – 2016

17 जून, 2016

इस वर्ष 19 जुलाई को मनाई जा रही गुरु पूर्णिमा के लिए हमारी पूजनीय संघमाताजी का विशेष सन्देश

प्रिय आत्मन्,

गुरु पूर्णिमा के इस पावन दिवस पर, गुरु का सम्मान करने की इस सुन्दर परंपरा में हम भारत एवं विश्व भर के अनेक भक्तों के साथ शामिल हैं। गुरु वह माध्यम हैं जिनके द्वारा ईश्वर उन्हें जानने की हमारी आत्मा की तीव्र ललक का उत्तर देते हैं। यह एक ऐसा समय हो जब हम अपने प्रिय गुरुदेव और उनकी शिक्षाओं को पाने के आनन्द का पुन: अनुभव करें, और उस आशीर्वाद की विशालता का नए सिरे से बोध करें। मैं प्रार्थना करती हूँ कि उनके प्रेम एवं दिव्य ज्ञान द्वारा अनेकानेक तरीकों से आपके जीवन में आये परिवर्तनों पर चिंतन करते हुए, आप उनके द्वारा दिखाए मार्ग पर दृढ़तापूर्वक बने रहने के एक अधिक मज़बूत संकल्प का अनुभव करें।

गुरुदेव ने अपनी आध्यात्मिक उदारता से हमें भर दिया है : क्रियायोग का मुक्तिदायी विज्ञान, ईश्वर के साथ समस्वरता स्थापित करने वाले आदर्श-जीवन के सिद्धान्त, तथा उनके अपने विजयी जीवन का उदाहरण। परन्तु गुरु के साथ हमारे संबंध में एक महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत पहलू भी है, जो गुरुजी की उनके गुरुदेव के साथ प्रथम भेंट के दौरान श्रीयुक्तेश्वरजी के इन शब्दों में व्यक्त हुआ है : “मैं तुम्हें अपना नि:शर्त प्रेम देता हूँ। क्या तुम भी मुझे वैसा ही नि:शर्त प्रेम दोगे?” और गुरुजी ने उत्तर दिया : “गुरुदेव, मैं सदा-सर्वदा आपसे प्रेम करुंगा।” उनके इस परस्पर आदान-प्रदान में गुरु-शिष्य संबंध का मूल तत्त्व बसा है। आपने भी अपने गुरु के साथ यही आध्यात्मिक अनुबंध किया है; और आपसी विश्वास एवं निष्ठा का वह बंधन, आपके हृदय तथा मन में नित्य-नवीन होकर, आपको सदा उनके निकट रखेगा। जब जीवन कठिन प्रतीत होता है, या आध्यात्मिक प्रगति धीमी पड़ती महसूस होती है, तब उनके इन सांत्वनादायक शब्दों को याद रखें,

“मैं सदा तुम्हारे साथ रहूँगा,” और आप यह शक्ति एवं विश्वास प्राप्त करेंगे कि उनकी सहायता से आप आंतरिक एवं बाह्य दोनों ही कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। वे आप पर अपनी दृष्टि रखते हैं और अनन्त धैर्य के साथ आपका मार्गदर्शन करते रहेंगे, जब तक की आप भी माया के प्रत्येक दोष से मुक्त न हो जाएं। जब आप उनके असीम प्रेम की वास्तविकता को दृढ़ता से थामे रखते हैं तब कुछ भी आपके लिए बाधा नहीं बन सकता।

जब हम अपने गुरु से नि:शर्त प्रेम केवल प्राप्त ही नहीं करते, बल्कि अपना नि:शर्त प्रेम उन्हें अर्पित भी करते हैं, तब गुरु के साथ हमारा संबंध निरंतर प्रगाढ़ होता जाता है। प्रत्येक दिवस ऐसे अवसर लेकर आता है, जब हम अपने कर्मों में अपनी भक्ति एवं कृतज्ञता को मूर्त रूप दे सकते हैं, और उनके लिए अपना सर्वश्रेष्ठ करने के आनन्द को प्राप्त कर सकते हैं। फल के लिए अधीर हुए बिना गुरु की शिक्षाओं को निष्ठापूर्वक अपने जीवन में उतारना, हमारे लिए अपने गुरु को सम्मान प्रदान करने का सर्वोच्च तरीका है। अपने ध्यान में, प्रविधियों के अभ्यास को भक्ति का एक उपहार बनाएं। दैनिक जीवन में आत्म-सुधार के लिए किए गए अपने निरन्तर प्रयासों को उन्हें अर्पित करें। और ऐसे समय में, जब गुरु के प्रति आपके नि:शर्त प्रेम की परिस्थितियों द्वारा परीक्षा ली जाए, या उनके प्रकट मौन द्वारा, जब किसी कठिनाई को हटाने के लिए आपने उनसे प्रार्थना की हो, यह जानें कि तब भी वे आपके साथ हैं और आपको एकात्मता, आन्तरिक शक्ति, एवं समझ के नवीन स्तरों पर ले जाने का प्रयास कर रहे हैं। जब आप उनके श्रेष्ठतर ज्ञान के प्रति विश्वास एवं समर्पण का भाव रखते हैं, तब आप अपनी चेतना को परिवर्तित होते महसूस करेंगे, क्योंकि उनकी इच्छा आपकी इच्छा बन जाती है, उनका ज्ञान आपकी समझ, और उनका प्रेम आपका प्रेम बन जाता है। आपका हृदय उनके रूपांतरकारी स्पर्श के लिए खुल जाएगा, और आप माया के बंधनों को टूटता हुआ पाएंगे, जब तक कि आप अंतत:, गुरु के माध्यम से ईश्वर के साथ दिव्य एकरूपता का बोध नहीं कर लेते, जो गुरुदेव ने श्रीयुक्तेश्वरजी के साथ अनुभव किया था। तब आपकी आत्मा उनके इन शब्दों को प्रतिध्वनित करेगी: “अपनी सीमितता को सदा के लिए विलीन कर, हम एक साथ अनन्त जीवन में समा जाएंगे।” आपके निरन्तर प्रयासों और उनकी कृपा द्वारा, वह परम आशीर्वाद आपको प्राप्त हो।

गुरुदेव के प्रेम एवं अनन्त आशीर्वादों के साथ,

श्री श्री मृणालिनी माता

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