नए संकल्प लें : जैसा आप बनना चाहते हैं वैसे बनिए!

परमहंस योगानन्द द्वारा

नव वर्ष की पूर्व संध्या पर वर्ष 1934 में, परमहंस योगानन्दजी द्वारा स्थापित संस्था सेल्फ़-रियलाइजे़शन फे़लोशिप (योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया) के मुख्यालय में दिया गया उनका प्रवचन। पूरा संदेश JOURNEY TO SELF-REALIZATION भाग तीन परमहंस योगानन्दजी की वार्ताएं एवं आलेख (भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया द्वारा प्रकाशित) नामक संकलन में उपलब्ध है।

आने वाले वर्ष में आप क्या करने जा रहे हैं और कैसा बनने जा रहे हैं इस विषय पर दृढ़ संकल्प लें। अपने लिए एक कार्यक्रम तैयार कीजिए; उस पर अमल कीजिए और उसके अनुसार अपने को रूपांतरित कीजिए और आप पाएंगे कि ऐसा करने पर आपको कितनी अधिक प्रसन्नता मिलती है। अपने को सुधारने में असफल होने का अभिप्राय है कि आप अपनी संकल्प शक्ति गँवा चुके हैं। आपका स्वयं के सिवा कोई दूसरा बड़ा मित्र या शत्रु नहीं है। यदि आप स्वयं अपने सबसे अच्छे मित्र बन जाते हैं तो यह आपकी उपलब्धि होगी। ईश्वर का ऐसा कोई विधान नहीं है जो आपको जैसा आप बनना चाहते हैं और जो आप पाना चाहते हैं उससे आपको वंचित रखे। आपके जीवन में घटने वाली कोई भी घातक घटना तब तक आपको प्रभावित नहीं कर सकती जब तक आप स्वयं उसे अनुमति नहीं देते।

इस विश्वास को कि आप जैसे चाहें वैसे बन सकते हैं, किसी भी हाल में कमज़ोर न होने दें। आपको कुछ भी प्राप्त करने के मार्ग में कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं कर सकता सिवाय आपके अपने। यद्यपि मेरे गुरु स्वामी युक्तेश्वरजी मुझसे बार-बार यह बात कहते थे, तब भी शुरू में इस पर विश्वास करना मेरे लिए बहुत कठिन था। किंतु जब मैंने परमात्मा की भेंट स्वरुप संकल्प शक्ति का प्रयोग करना सीख लिया तब मैंने इसे अपना सबसे अच्छा संरक्षक अनुभव किया। अपनी संकल्प शक्ति का उपयोग न करना एक पत्थर या एक निर्जीव वस्तु की तरह होना है — एक निष्प्रभावी व्यर्थ मनुष्य होना है।

सकारात्मक विचार, एक बड़े गुप्त खोज दीप की तरह, आपको सफलता का मार्ग दिखलाता है। यदि आप गहराई से विचार विश्लेषण करेंगे तो हमेशा कोई न कोई रास्ता निकल आएगा। जो लोग थोड़ा सा प्रयास करके ही छोड़ देते हैं वह अपनी वैचारिक शक्ति को दुर्बल बना लेते हैं। अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आपको तब तक विचार विश्लेषण करते रहना चाहिए जब तक आपको सफलता प्राप्त करने का मार्ग स्पष्ट दिखाई न देने लगे।

अपने मन से सभी नकारात्मक विचार एवं डर को निकाल कर फेंक दीजिए। हमेशा याद रखें कि परमात्मा की संतान होने के नाते आप में वह सभी संभावनाएं और क्षमताएं हैं जो किसी भी सर्वोत्कृष्ट मनुष्य के पास हो सकती है। आत्मा के रूप में कोई भी मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य से अधिक श्रेष्ठ नहीं है। अपनी इच्छाशक्ति को परमात्मा के ज्ञान के साथ लयबद्ध कर मार्गदर्शन प्राप्त करें, जैसा की संतों के ज्ञान से अभिव्यक्त होता है। यदि आपकी संकल्प शक्ति एवं विवेक में एकत्व हो जाये तो आप कुछ भी उपलब्ध कर सकते हैं।

बुरी आदतें आपकी सबसे बड़ी शत्रु हैं। आपकी बुरी आदतें ही आपको दुख के रूप में दंड देती हैं। बुरी आदतें आपसे वह कुछ करवा लेती हैं जो वस्तुतः आप नहीं करना चाहते और जिनके परिणाम स्वरूप आपको कष्ट उठाना पड़ता है। आपको जीवन में आगे बढ़ते रहने के साथ बुरी आदतों को छोड़ देना चाहिए। हर दिन बुरी आदतों से मुक्त होकर कुछ नई आदतें डालनी चाहिए। आने वाले वर्ष में पूरी दृढ़ता के साथ संकल्प लीजिए कि आप उन आदतों को विकसित करेंगे जिन्हें अपनाने से आपका सबसे अधिक कल्याण होता है।

बुरी आदतों से मुक्त होने का सबसे सही तरीका यह है कि उन पर ध्यान ही न दें; उन्हें स्वीकार न करें। कभी ऐसा मत सोचिए कि कोई बुरी आदत आप पर हावी रह सकती है।… मैं ऐसा नहीं करूँगा इस तरह का निषेधात्मक संकल्प मजबूत करें। उन सभी बातों से परे रहें जो बुरी आदतों को उकसाती हैं।

संकीर्ण स्वार्थी सोच से कभी अपने आपको सीमित मत कीजिए। सबको अपनी उपलब्धि और खुशी में शामिल कीजिए, ऐसा करने पर आप ईश्वर की इच्छा का सम्मान करते हैं। जब आप अपने विषय में विचार करें तब साथ-साथ दूसरों के विषय में भी विचार कीजिए। जब आप शांति पाने का विचार करें तो उन लोगों के विषय में भी सोचिए जिन्हें शांति की आवश्यकता है। यदि आप दूसरों को प्रसन्नता देने के लिए सच्चा भरसक प्रयास करेंगे तो आप पाएंगे कि आप परमात्मा को प्रसन्न कर रहे हैं।

सामंजस्य के साथ जीवन जीना, जिस परमात्मा ने आपको भेजा है उसकी इच्छा के अनुरूप जीना, बस इसी में आपकी रुचि होनी चाहिए। कभी साहस मत खोइए और सदा मुस्कुराते रहिए। चेहरे और हृदय की मुस्कान में पूरी तरह सामंजस्य होना चाहिए। यदि आपका तन, मन और आत्मा, अंतःकरण की परम दिव्य चेतना से खिला हुआ है तो आप जहाँ जाएंगे वहाँ आनंद और मुस्कान बिखेरेंगे।

हमेशा ऐसे लोगों की संगति कीजिए जो आपको प्रेरणा देते हैं; ऐसे लोगों के बीच रहिए जो आपकी चेतना को उन्नत करते हैं। अपने संकल्प और सकारात्मक सोच को कभी भी कुसंगति से विषाक्त मत होने दीजिए। यदि आपको अच्छे लोगों का संग प्राप्त न हो तो भी ध्यान के माध्यम से सत्संग का अनुभव स्वयं कर सकते हैं। आपका सबसे उत्तम साथी संगी, ध्यान से प्राप्त होने वाला आनंद है।

आपके अंदर और बाहर हर तरफ दिव्यता से भरपूर है किंतु ध्यान न देने के कारण आप परमात्मा की अंतर्यामी उपस्थिति का अनुभव नहीं कर पाते। जब आप उनके साथ समस्वर होते हैं जैसे रेडियो को मिलाया जाता है तो आपको परमात्मा की ऊर्जा प्राप्त होने लगती है। यह ऐसे ही है जैसे कि आप समुद्री पानी से भरी एक शीशी लेकर उस पर ढक्कन लगा देते हैं उसको समुद्र में तैरने के लिए छोड़ देते हैं; यद्यपि शीशी पानी में तैरती रहती है लेकिन इसके अंदर का पानी समुद्र के पानी के साथ एक नहीं हो सकता। किंतु जैसे ही आप शीशी खोल देते हैं अंदर का पानी बाहर के पानी के साथ घुल मिल जाता है। हमें परमात्मा के साथ एकात्म होने के लिए अज्ञान की डाट निकाल कर फेंक देनी है।

अनंतता हमारा आश्रय है। हम शरीर की कारवाँ सराय में बस यात्रा कर रहे हैं। अज्ञान के अंधकार से मोहित लोग, परमात्मा तक ले जाने वाले मार्ग से भटक जाते हैं। किंतु ध्यान द्वारा जब परमात्मा अपने अपव्ययी शिशु को थाम लेते हैं तब वह और टालमटोल नहीं करता ।

नए वर्ष में नई आशा के साथ प्रवेश करें। याद रखिए कि आप परमात्मा की संतान हैं। यह केवल आपके ही हाथ में है कि आप भविष्य में कैसे बनने जा रहे हैं। गर्व कीजिए कि आप परमेश्वर की संतान है। आपको किससे डर लगता है? चाहे कुछ भी हो जाए यह विश्वास रखें कि वह सब परमात्मा का भेजा हुआ है; और आपको दिन प्रतिदिन की इन चुनौतियों का सामना करना चाहिए। यही आपकी सच्ची जीत है। उनकी इच्छा का सम्मान कीजिए; तब कुछ भी आपको चोट नहीं पहुँचा सकेगा। वह हमेशा आपसे प्रेम करते हैं। ऐसा सोचिए। ऐसा विश्वास रखिए। समझ लीजिए। और अचानक एक दिन आप पाएंगे कि आप परमेश्वर में अमरता पा गए हैं।

अधिक से अधिक ध्यान का अभ्यास कीजिए और विश्वास रखें कि चाहे कुछ भी हो, परमेश्वर हमेशा आपके साथ हैं। आप देखेंगे कि भ्रम का आवरण आपके जीवन से लुप्त हो जाएगा और आप उस सत्ता के साथ एक हो जाएंगे जो ईश्वर हैं। इसी प्रकार से मैंने अपने जीवन में सर्वश्रेष्ठ आनंद प्राप्त किया है। अब मैं कुछ भी नहीं खोज रहा हूँ क्योंकि मुझे उनके अंदर सब कुछ मिल गया है। समस्त संपत्तियों में सर्वोत्कृष्ट संपत्ति से मुझे कोई वंचित नहीं कर सकेगा।

नव वर्ष पर, आप सभी के लिए मेरा यही संदेश है।

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