Paramahansa Yogananda's guidance for difficult times.

श्री श्री परमहंस योगानन्द द्वारा आज की अनिश्चित आर्थिक परिस्थितियों के लिए मार्गदर्शन

आज की डावांडोल एवं अनिश्चित आर्थिक परिस्थितियों से घिरे हुए पूरे विश्व के अनेक व्यक्ति अपने एवं अपने परिवारजनों के लिए सही समझ व मार्गदर्शन खोज रहे हैं।

पचहत्तर साल पूर्व परमहंस योगानन्दजी ने उन विश्वव्यापी परिवर्तनों का वर्णन किया जिनसे इस ग्रह को अधिक उन्नत आध्यात्मिक युग में प्रवेश करने के लिए संक्रमण काल के रूप में गुजरना होगा। यद्यपि उन्होंने इसको समय सारणी के रूप में नहीं दिया उन्होंने इस प्रकार के भीषण समय का सामना करने के लिए विस्तृत आध्यात्मिक मार्गदर्शन एवं व्यावहारिक सुझाव दिए।

परमहंस योगानन्दजी के पूज्य गुरुदेव स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी ने अपनी सारगर्भित पुस्तक ‘कैवल्य दर्शनम्’ में इस रहस्य का उद्घाटन किया है कि हमारे ग्रह का आगामी युग द्वापर युग अर्थात परमाणु ऊर्जा का युग है। परमहंस योगानन्दजी ने उल्लेख किया कि हाल ही में बीते कलयुग का प्रभाव समसामयिक सभ्यता पर अभी भी भारी रूप में व्याप्त है। हज़ारों वर्षों की लंबी अवधि में निर्मित भौतिकतावादी विचारों की छाप विविध प्रकार के रीति रिवाज, परंपराओं एवं अंधविश्वासों के रूप में विद्यमान हैं जिसने मनुष्य को मनुष्य से और देश को देश से अलग-थलग कर रखा है। जब मानवता इन युगों पुरानी भ्रांतियों तथा विसंगतियों को तोड़कर सिर उठा रही है ऐसे समय में परमहंस योगानन्दजी ने समाज व राष्ट्रों में घटने वाली भारी उथल-पुथल और उसके बाद सारे संसार में अतुलनीय उन्नति होने की भविष्यवाणी की थी।

परमहंस योगानन्दजी के इस विषय पर मार्गदर्शन को संक्षेप में हमारी परम पूजनीय तृतीय अध्यक्ष श्री श्री दया माता — जो हमारे गुरुदेव की सबसे वरिष्ठ व घनिष्ठ शिष्यों में से एक थीं — ने इस प्रकार से कहा है :

“परमहंस योगानन्दजी ने हमारे अंदर यह बहुत गहराई से भर दिया था कि जब भी वैश्विक परिस्थितियों व सभ्यताओं में महान् तथा महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं तो उनके पीछे हमेशा एक सूक्ष्म कारण निहित होता है — एक अदृश्य कर्म का सिद्धांत, जो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को संचालित करता है और वृहद् रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय रहता है। जिस प्रकार व्यक्तिगत जीवन में संकट काल का सामना करने के लिए सही रुझान है कि हम स्वयं से प्रश्न करें — ‘मुझे इस स्थिति के द्वारा क्या शिक्षा ग्रहण करनी है ?’ ठीक उसी प्रकार संपूर्ण विश्व को भी हमारे विकास के इस मोड़ पर दिव्य सत्ता द्वारा दी जा रही शिक्षा को समझने की आवश्यकता है।

“मानव जाति को संतुलित आध्यात्मिक जीवन जीने की कला को अपनाना होगा, और इसे एक वैश्विक परिवार के रूप में रहना होगा। इस विस्फोटक तकनीकी प्रगति के युग में हम जिन दबावों का सामना कर रहे हैं और जो चिंताएं हमें दीमक की तरह खा रही हैं, वे सभी हमें अब या आगे चलकर इन शिक्षाओं को ग्रहण करने के लिए विवश कर देंगी।

“परमहंसजी ने इस स्थिति को बहुत पहले ही देख लिया था और अनेक बार हमसे कहा — ‘वह समय आने वाला है जब सारे संसार को सादा जीवन शैली अपनानी होगी। हमें ईश्वर प्राप्ति के लिए जीवन को सरल बनाना होगा। हमें विश्व बंधुत्व की चेतना एवं भावना के साथ जीना होगा क्योंकि जब सभ्यता का विकास होता है तब हम पाते हैं कि संसार कितना छोटा हो जाता है। पूर्वाग्रह, असहनशीलता समाप्त होने चाहिए।’

“जीसस ने कहा था, ‘अपने आप में बिखरा और बाँटा हुआ घर अधिक समय तक नहीं टिक सकता।’ विज्ञान ने देशों को इतना अधिक एक दूसरे के निकट पहूँचा दिया है कि सारी पृथ्वी जैसे एक घर बन गई है जिसके सभी सदस्य एक दूसरे पर निर्भर और परस्पर जुड़े हुए हैं। हमारे समय के बिखरते वातावरण को देखते हुए, जबकि एक छोटा सा परिवार भी साथ नहीं रह पा रहा है, क्या विश्व के एक परिवार में रूपांतरित होने की कोई आशा या संभावना है? जी हाँ, आशा की किरण प्रतीक्षा कर रही है — पारिवारिक इकाइयों और राष्ट्र रुपी वैश्विक परिवार के लिए — यदि हम उन उद्देश्यों और जीवन मूल्यों का पोषण करने के लिए समय निकालना शुरू कर दें, जो सच्ची शांति तथा आध्यात्मिक सूझबूझ के लिए लाभदायक हैं।”

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