वाईएसएस/एसआरएफ़ द्वारा नए अध्यक्ष की घोषणा

2 सितम्बर, 2017

Swami Chidananda current Spiritual head of YSS/SRF.

स्वामी चिदानन्द गिरि वाईएसएस/एसआरएफ़ अध्यक्ष एवं आध्यात्मिक प्रमुख चुने गए

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के निदेशक मण्डल को आपके साथ यह जानकारी साझा करते हुए खुशी हो रही है कि स्वामी चिदानन्द गिरि को योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (वाईएसएस/एसआरएफ़) का अध्यक्ष और आध्यात्मिक प्रमुख के रूप में मनोनीत किया गया। स्वामीजी को श्री श्री मृणालिनी माता के स्थान पर नियुक्त किया गया, जिन्होंने जनवरी 2011 से पिछले महीने अपने निधन तक इस पद पर सेवा की। उनकी नियुक्ति बुधवार, 30 अगस्त, 2017 को एसआरएफ़ निदेशक मण्डल द्वारा सर्वसम्मति से की गई थी।

हमारी स्वर्गीय अध्यक्ष, श्री श्री दया माता ने 2010 में अपने देहावसान से पूर्व ही श्री मृणालिनी माता से यह दृढ़ विश्वास व्यक्त किया था कि श्री मृणालिनी माता के पश्चात् स्वामी चिदानन्दजी को ही एसआरएफ़/वाईएसएस का अध्यक्ष एवं आध्यात्मिक प्रमुख बनाया जाना चाहिए। मृणालिनी माताजी ने 3 अगस्त, 2017 को अपने देह त्याग से कुछ महीने पहले इस बात की पुष्टि की थी, और निदेशक मण्डल से श्री दया माता की इस अनुशंसा के साथ अपनी सहमति प्रकट की थी।

स्वामी चिदानन्दजी चालीस वर्षों से गुरुजी के आश्रमों में संन्यासी रहे हैं, और विगत आठ वर्षों से एसआरएफ़ तथा वाईएसएस निदेशक मण्डल के सदस्य हैं। स्वामीजी को अपने संन्यास जीवन के लगभग आरम्भ से ही श्री मृणालिनी माता के सान्निध्य एवं मार्गदर्शन में काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। परमहंस योगानन्दजी की शिक्षाओं के और वाईएसएस/एसआरएफ़ के अन्य प्रकाशनों के सम्पादन कार्य में श्री मृणालिनी माता की सहायता करते हुए स्वामीजी को निरन्तर उनके बोधप्रद एवं गुरु से समस्वर अद्भुत प्रशिक्षण का लाभ मिला।

ईश्वर एवं वाईएसएस/एसआरएफ़ कार्य में सेवा के प्रति जागृति

1953 में ऍनापोलिस, मेरीलैण्ड, में जन्मे स्वामी चिदानन्द का परमहंस योगानन्दजी की शिक्षाओं एवं उनकी संस्था सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप से प्रथम परिचय 1970 के दशक के प्रारम्भ में एनसिनिटस में हुआ, जब वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलीफोर्निया, सॅनडिएगो में समाज शास्त्र एवं दर्शन शास्त्र के छात्र थे। भारत की आध्यात्मिकता में लंबे समय से रुचि रखने वाले, उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर के ठीक उत्तर में एनसिनिटस में एसआरएफ़ आश्रम केन्द्र का दौरा किया, जो निकटवर्ती तटीय समुदायों में रहने वाले कई छात्रों के लिए एक परिचित स्थान था।

कुछ महीने बाद, उन्हें योगी कथामृत की एक प्रति मिली और वे इसके पृष्ठों में वर्णित महान् ज्ञान और दिव्य चेतना से तुरंत मोहित हो गए। विश्वविद्यालय में अपने अंतिम वर्ष के दौरान, उन्होंने सेल्फ-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप पाठों के लिए नामांकन किया और एनसिनिटस में एसआरएफ़ सेवाओं में भाग लेने लगे। वे स्वामी आनंदमय, जो उस समय वहाँ संन्यासी थे, की बातों से बहुत प्रभावित थे और स्वामी आनंदमय के व्यक्तिगत परामर्श से भी लाभान्वित हुए। यह इस पवित्र वातावरण में था — परमहंसजी के स्पंदन से इतना व्याप्त — कि वे वहाँ रहने वाले संन्यासियों और संन्यासिनियों से गहराई से प्रभावित थे, और अपना जीवन पूरी तरह से भगवान् की खोज करने और एक संन्यासी शिष्य के रूप में परमहंस योगानन्द के कार्य की सेवा करने के लिए समर्पित करने की इच्छा उनमें लगभग तुरंत जाग गई।

स्वामी चिदानन्द ने 19 नवम्बर, 1977 को एनसिनिटस में संन्यासियों के प्रवेशार्थी आश्रम में प्रवेश किया, और युवा संन्यासियों को प्रशिक्षित करने के प्रभारी संन्यासी, स्वामी प्रेममय के कठोर और प्रेमपूर्ण मार्गदर्शन में वहाँ डेढ़ साल बिताए। यह स्वामी प्रेममय थे जिन्होंने सबसे पहले श्री मृणालिनी माता को सुझाव दिया था कि वह इस युवा संन्यासी को एसआरएफ़ संपादकीय विभाग में लेने पर विचार करें। अप्रैल 1979 में, अपने प्रवेशार्थी प्रशिक्षण को पूरा करने के बाद, स्वामी चिदानन्द को मॉउंट वाशिंगटन में एसआरएफ़ अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय में प्रकाशन विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया जहाँ उन्होंने श्री मृणालिनी माता और उनकी सह-संपादक, श्री सहज माता, जिनको गुरुजी ने अपने लेखन और वार्ता को संपादित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रशिक्षित किया था, के अधीन अपनी सेवा प्रदान की।

1996 में सहज माताजी के देहावसान के कुछ ही समय पश्चात् तत्कालीन अध्यक्ष श्री दया माता द्वारा स्वामी चिदानन्दजी को एसआरएफ़/वाईएसएस के अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाशन मण्डल (International Publication Council) के लिए नियुक्त किया गया था। इस स्थान पर स्वामीजी ने श्री दया माता और श्री मृणालिनी माता के साथ, 2010 में दया माताजी के देह त्याग तक, अपनी सेवाएं दीं। इस दौरान स्वामीजी ने अनेक पुस्तकों को तैयार करने एवं प्रकाशित करने में, स्वयं गुरुजी द्वारा दीक्षित इन दोनों वरिष्ठ शिष्याओं की सहायता की, जिनमें परमहंसजी की बृहद् शास्त्रीय व्याख्याएं (God Talks with Arjuna : The Bhagwad Gita, The Second Coming of Christ : The Resurrection of The Christ Within You) और 1980 से आज तक प्रकाशित किये गए एसआरएफ़/वाईएसएस के अन्य सभी प्रकाशन शामिल हैं। गुरुजी की इन दो मुख्य शिष्याओं से वर्षों तक उत्तरोत्तर गहन प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद, स्वामीजी को श्री मृणालिनी माता ने अपने देहावसान के बाद एसआरएफ़/वाईएसएस प्रकाशनों के मुख्य सम्पादक के रूप में उनका स्थान लेने के लिए नियुक्त कर दिया था।

स्वामी चिदानन्दजी को 1997 में श्री दया माता द्वारा संन्यास दीक्षा प्रदान की गई। उनके संन्यास नाम चिदानन्द का अर्थ है “अनन्त दिव्य चेतना द्वारा परमानन्द” की प्राप्ति। सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के एक नियुक्त संन्यासी के रूप में, उन्होंने परमहंस योगानन्दजी की शिक्षाओं को संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूरोप और भारत में प्रवचन यात्राओं और रिट्रीट कार्यक्रमों के साथ-साथ लॉस एंजिलिस में वार्षिक एसआरएफ़ वैश्विक दीक्षांत समारोहों में साझा किया है। उन्हें 2009 में श्री दया माता द्वारा एसआरएफ़ एवं वाईएसएस के निदेशक मण्डल का सदस्य नियुक्त किया गया। इसके अतिरिक्त उन्होंने एसआरएफ़ की विभिन्न गतिविधियों एवं इनके संचालन का अध्यक्ष के मार्गदर्शन में निरीक्षण करने वाली प्रबन्ध-समिति के सदस्य के रूप में अनेक वर्षों तक अपनी सेवाएं दीं।

“हमारी आत्माओं के एकमेव प्रियतम के रूप में मिलकर ईश्वर की खोज करना”

अपने चुनाव की घोषणा हो जाने बाद वाईएसएस/एसआरएफ़ के संन्यासियों से बात करते हुए, स्वामी चिदानन्दजी ने कहा :

“पूर्ण विनम्रता, एवं इस चेतना के साथ कि हमेशा गुरुदेव परमहंस योगानन्दजी ही इस संस्था के प्रमुख रहेंगे, मैं आपकी प्रार्थनाएं और सहायता चाहता हूँ ताकि हमारी प्रिय श्री दया माता और श्री मृणालिनी माता की इच्छा को पूर्ण करने का प्रयास करते हुए उनके पद चिन्हों पर चल सकूँ। गुरुदेव के प्रेम का विशुद्ध माध्यम बनने की उनकी प्रतिबद्धता — प्रत्येक विचार, निर्णय, एवं कार्य को उनकी इच्छा तथा मार्गदर्शन से समस्वर करने का उनका दिव्य उदाहरण — मेरे सम्पूर्ण आश्रम जीवन में मेरी प्रेरणा रहा है; एवं उसी पवित्र उत्तरदायित्व की भावना के साथ आप सब की सहायता, प्रार्थनाओं, सदिच्छा, तथा दिव्य मित्रता में विश्वास रखते हुए, मैं ईश्वर एवं गुरुजनों के इस महान् कार्य की सेवा करने के लिए उत्सुक हूँ।

“आपमें से प्रत्येक को गुरुजी ने स्वयं अपना शिष्य चुना है, एवं इस अभिस्वीकृति के साथ मैं आपकी चरण-रज ग्रहण करता हूँ कि गुरुदेव के चेलों के एक संयुक्त आध्यात्मिक परिवार के रूप में ही हम, एक साथ मिलकर, दिव्य प्रेम, आनन्द, एवं आत्म-समर्पण की भावना के साथ एसआरएफ़/वाईएसएस के इस महान कार्य के विस्तार को जारी रख सकते हैं — हमारे गुरु द्वारा हमें प्रदत्त उसी भावना के साथ हमारी आत्माओं के एकमेव प्रियतम के रूप में ईश्वर की खोज करना जिसके बारे में उन्होंने भविष्यवाणी की है कि जो भविष्य में भी उनकी संस्था का जीवन एवं शक्ति होगी। जय गुरु, जय माँ!”

वाईएसएस/एसआरएफ़ के विश्वव्यापी परिवार को स्वामी चिदानन्दजी निम्न सन्देश प्रेषित करना चाहते हैं :

“प्रिय आत्मन्, ईश्वर एवं गुरु के प्रेम के साथ मैं आप सब का अभिवादन करता हूँ, और परमहंस योगानन्द द्वारा हमें दिखाए गए क्रियायोग ध्यान और ईश्वर के साथ समस्वरता के इस दिव्य मार्ग पर हमारी यात्रा में, मैं प्रार्थना करता हूँ कि हम सभी को उनके निरंतर आशीर्वाद प्राप्त होते रहें। आप सबकी सेवा का यह अवसर प्राप्त होने पर मैं विनम्रतापूर्वक उनका आभारी हूँ, जैसे कि एसआरएफ़/वाईएसएस आश्रमों के सभी संन्यासी एवं संन्यासिनियाँ हैं। ईश्वरान्वेषी आत्माओं के विश्वव्यापी समुदाय के रूप में — चाहे सांसारिक मार्ग पर चलने वाले शिष्य हों, या संन्यास मार्ग पर — आईए, इन शिक्षाओं के रूप में प्राप्त आध्यात्मिक आशीर्वादों के प्रति कृतज्ञ रहकर तथा अपनी साधना को गहरा करने एवं ईश्वर और महान् गुरुजनों के साथ आन्तरिक समस्वरता स्थापित करने के संकल्प के साथ हम एक साथ जुड़ें। आपमें से प्रत्येक को उनके अनवरत आशीर्वादों का अनुभव हो। जय गुरु!

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