योगदा सत्संग समाचार

12 मई, 2017

वाईएसएस के सम्मान में भारत सरकार द्वारा संस्मरणात्मक डाक टिकट का लोकार्पण

Postage stamp commemorating the 100th anniversary of Yogoda Satsanga Society.

एक योगदा भक्त के लिए, 7 मार्च का संबंध कुछ ऐसे पवित्र अवसरों से है जो कि उसके हृदय के अत्यन्त निकट हैं। पैंसठ वर्ष पूर्व, 1952 में आज ही के दिन, परमहंस योगानन्दजी ने ईश्वर और अपने प्रिय भारत के बारे में बोलते हुए महासमाधि ली थी। 1977 में, भारत सरकार ने आज ही के दिन एक संस्मरणात्मक डाक टिकट जारी कर गुरुजी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की थी, और इस प्रकार विश्व की आध्यात्मिक सम्पदा में उनके अद्वितीय योगदानों को औपचारिक रूप से मान्यता प्रदान की। और इस वर्ष 7 मार्च को भारत के प्रधानमंत्री, श्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया के सम्मान में एक संस्मरणात्मक डाक टिकट जारी कर इन प्रेमावतार द्वारा स्थापित इस संस्था के प्रति उपयुक्त सम्मान अभिव्यक्त किया। 1800 से अधिक भक्त इस कार्यक्रम 50% में उपस्थित थे। वाईएसएस निदेशक मण्डल के सदस्यों सहित कुछ अन्य योगदा संन्यासी भी इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में उपस्थित थे।

भवन के प्रवेश द्वार पर स्वामी विश्वानन्द एवं स्मरणानन्द द्वारा प्रधानमंत्री का शिष्टाचारपूर्वक स्वागत किया गया तथा उन्हें मुख्य सभागार में ले जाया गया। प्रधानमंत्री तथा वाईएसएस निदेशक मण्डल के सदस्यों द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। स्वामी विश्वानन्द ने एक पुष्पगुच्छ से प्रधानमंत्री का स्वागत किया एवं स्वामी स्मरणानन्द ने एक शॉल भेंट कर माननीय अतिथि का सम्मान किया।

स्वामी स्मरणानन्द ने अपना संबोधन श्रीमद्भगवद्गीता के एक श्लोक के साथ प्रारम्भ किया जो कहता है कि धर्म की रक्षा और अधर्म का विनाश करने के लिए प्रत्येक युग में अवतार जन्म लेते हैं। फिर भी, स्वामीजी ने आगे कहा कि कुछ अवतार ऐसे भी होते हैं जिनके जीवन का उद्देश्य भक्तों को उनके भीतर छुपे माया के दानवों का वध करने में सहायता करना होता है; और हमारे प्रिय गुरुदेव एक ऐसे ही अवतार थे जो भ्राँत मानवता को दिव्य ज्ञान की राह दिखाने के लिए अवतरित हुए थे। स्वामीजी ने परमहंसजी द्वारा स्थापित इस संस्था के महत्व एवं इसके बृहद् योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने गुरुजी के इन शब्दों को उद्धृत किया, “मेरे बाद यह संस्था ही मेरा शरीर होगी।” गुरुजी की संस्था के व्यापक प्रभाव को बताते हुए स्वामीजी ने कहा, “योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया, उनकी विस्तारित परछाई के रूप में, प्रेम, आनंद, ज्ञान, और सेवा के उनके संदेश का निरन्तर प्रसार कर रही है। योगदा सत्संग/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन की शिक्षाओं के माध्यम से लाखों लोगों ने धर्म के सही अर्थ को और उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण इसके अभ्यास के सबसे प्रभावी ढंग को समझा है। योग ध्यान सभी सत्यान्वेषियों के लिए उनके घर पर उपलब्ध है।”

इस अद्वितीय अवसर पर स्वामी विश्वानन्द ने हमारी प्रिय संघमाता एवं अध्यक्ष श्री श्री मृणालिनी माता द्वारा भेजा गया उनके आशीर्वादों से पूर्ण संदेश पढ़कर सुनाया। अपने संदेश में उन्होंने लिखा :

      योगदा सत्संग सोसाइटी (वाईएसएस) के शतकीय वर्ष के सम्मान में संस्मरणात्मक डाक टिकट जारी होने के इस विशेष अवसर पर, मैं आप सबको अपनी आत्मीय शुभकामनायें एवं दिव्य प्रेम प्रेषित करती हूँ। इस बात से मुझे अपार आनंद हो रहा है तथा मैं अत्यंत कृतज्ञ हूँ कि इस समारोह के द्वारा भारत सरकार योगदा सत्संग सोसाइटी एवं इसके संस्थापक — भारत के महान् सन्तों में एक — श्री श्री परमहंस योगानन्द के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रही है। मैं उन सभी की पूरे हृदय से आभारी हूँ जिनके अथक प्रयासों से यह संभव हो सका है। यद्यपि योगानन्दजी का अधिकांश समय अमेरिका में भारत की सार्वभौमिक आध्यात्मिकता तथा प्राचीन योग विज्ञान के प्रसार में बीता, फिर भी अपनी मातृभूमि के प्रति उनका प्रेम एवं लगाव कभी भी कम नहीं हुआ। आज ही के दिन, सन् 1952 में, इस जगत से प्रयाण करने से ठीक पहले, उनके अन्तिम शब्द अपने प्रिय भारत के प्रति उनके हृदय की श्रद्धांजलि थे।

स्वामी विश्वानन्द संघमाता एवं अध्यक्ष श्री श्री मृणालिनी माता का संदेश पढ़ते हुए।

      भारत के शाश्वत इतिहास से लेकर आज तक, इसकी सबसे बड़ी सम्पदा एवं शक्ति, इसके द्वारा उन चिरंतन आध्यात्मिक सत्यों को सँजोकर रखने तथा उनकी सक्रिय अभिव्यक्ति में निहित है जिन्हें इसके सन्तों द्वारा खोजा गया तथा मानवता को प्रदान किया गया। समय के साथ, महान् आत्माएं — सन्त, महात्मा, सर्वोच्च ईश-बोध प्राप्त ऋषि-मुनि— इस उत्कृष्ट एवं उदात्त कार्य हेतु अपने जीवन समर्पित करने के लिए भारत माता के प्रति अपने गहन प्रेम से प्रेरित हुई हैं। आज जो भारत सरकार ने इस प्रकार के एक अनुकरणीय दिव्य व्यक्तित्व के जीवन भर के कार्य का सम्मान करने का निर्णय लिया है वह केवल भारत के लिए ही नहीं, अपितु आज के इस कठिन समय में आध्यात्मिक आलोक हेतु इसकी ओर देखने वाले सम्पूर्ण विश्व के लाखों लोगों के लिए भी आशा एवं प्रेरणा का एक गहन स्रोत है।

      श्री श्री परमहंस योगानन्द प्रायः कहते थे, ‘स्वयं को सुधारो और तुम लाखों को सुधारोगे।’ भारत के दिव्य तथा सार्वभौमिक योग एवं ध्यान के विज्ञान में ऐसी सर्वाधिक प्रभावशाली विधियाँ सम्मिलित हैं जो हमारे स्वभावजन्य और विचार के ढाँचे में स्थाई रूपान्तरण लाती हैं। परमहंस योगानन्दजी की संस्था के मुख्य उद्देश्यों और आदर्शों में एक है समस्त राष्ट्रों में ध्यान की उन वैज्ञानिक प्रविधियों का प्रसार करना जिन्हें सहस्त्रों वर्षों से भारत के महान् ऋषि सिखाते आए हैं, और जिनके द्वारा प्रत्येक मानव-चाहे वह किसी भी राष्ट्र, जाति, या धर्म का हो — अपनी स्वयं की दिव्यता का बोध कर सकता है और आन्तरिक शांति, प्रेम, तथा आनंद का अनुभव कर सकता है। जब प्रत्येक व्यक्ति के अन्तर में शांति का वास होगा तो विश्व शांति स्वाभाविक रूप से प्रवाहित होगी।

      मैं आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की हृदय से सराहना करती हूँ कि वे अपने अति व्यस्त कार्यक्रम से समय निकाल कर इस विशेष अवसर पर स्वयं उपस्थित हुए। श्री मोदी जी द्वारा, जो स्वयं योग का गंभीरतापूर्वक अभ्यास करते हैं, योगदा सत्संग सोसाइटी के शतकीय वर्ष पर यह संस्मरणात्मक डाक टिकट जारी किया जाना अत्यधिक उपयुक्त है। उनके द्वारा प्रस्तावित और फिर थोड़े ही समय में इसे रिकॉर्ड देशों द्वारा संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव रूप में स्वीकार किया गया अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, विश्वभर में योग विज्ञान के सार्वभौमिक संदेश के प्रसार में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस युगांतरकारी पहल के लिए हम श्री मोदी जी के अत्यंत आभारी हैं।

      परमहंस योगानन्दजी ने भविष्यवाणी की थी कि भारत की आध्यात्मिकता तथा पश्चिमी देशों की भौतिक कुशलता के मेल से एक आदर्श विश्व सभ्यता का उदय होगा। इसलिए, अपने आरोही क्रमविकास में मानव चेतना के उन्नयन में सहायता के लिए भारत की एक महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक भूमिका है। मैं हृदय से प्रार्थना करती हूँ कि श्री श्री योगानन्दजी तथा भारत के अन्य महान् सन्तों द्वारा अपने जीवन में मूर्त की गईं एकता स्थापित करने वाली आध्यात्मिक शिक्षाओं के अभ्यास द्वारा हम विश्व शांति, ईश्वरीय सामंजस्य, तथा हमारे मानव परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए सुख-समृद्धि के एक युग की ओर आगे बढ़ सकें।

जब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी सभा को संबोधित करने के लिए उठे तो पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। उन्होंने अपने भाषण में, 7 मार्च के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि पैंसठ वर्ष पूर्व आज ही के दिन एक महान् आत्मा नश्वर शरीर के बन्धनों से मुक्त होकर युगों की आस्था का केन्द्र बन गई।

श्री मोदी ने ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ अ योगी के चुंबकत्व एवं लोकप्रियता की ओर श्रोताओं का ध्यान आकर्षित किया, कि यह पुस्तक अब इतनी अधिक भाषाओं में उपलब्ध है कि विश्व के 95% लोग इसे अपनी भाषा में पढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि जो भी इसे पढ़ते हैं वे इसे दूसरों को भी देना चाहते हैं, ठीक वैसे ही जैसे लोग मन्दिर में उन्हें मिला हुआ सारा प्रसाद खुद ही न खाकर, इसे दूसरों को बाँटने में अत्यधिक आनंद का अनुभव करते हैं। यह ऐसा इसलिए है क्योंकि योगानन्दजी का जीवन एवं संदेश मन्दिर से प्राप्त प्रसाद की भाँति ही पवित्र है।

अपनी मातृभूमि के प्रति गुरुजी के गहन प्रेम और भक्ति को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, प्रधानमंत्री जी ने गुरुजी की कविता माय इण्डिया की पंक्तियाँ पढ़ीं। गुरुजी की कविता समाधि तथा अन्य रचनाओं की अपनी व्याख्या प्रस्तुत करते हुए उन्होंने योग दर्शन की बारीकियों पर अत्यधिक स्पष्टता से अपने विचार रखे। योगदा सत्संग सोसाइटी द्वारा किये जा रहे प्रशंसनीय कार्य की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री जी ने कहा कि योगानन्दजी की निःस्वार्थ, आसक्ति रहित सेवा भावना के कारण ही इस संस्था ने न केवल एक शताब्दी पूर्ण की वरन् यह अपने संस्थापक की जीवन्त उपस्थिति के साथ निरन्तर फल-फूल रही है। एक परिवार की कार्यशैली की उपमा देते हुए प्रधानमंत्री जी ने कहा कि वाईएसएस ने सफ़लतापूर्वक गुरुजी की शिक्षाओं की शुद्धता को बनाये रखा है, और इनके मूल उद्देश्य को न तो “हल्का पड़ने दिया और न ही भटकने दिया।”

महान् सन्त कबीरदास जी की एक कविता की कुछ पंक्तियों को पढ़ते हुए, प्रधानमंत्री जी ने परमहंस योगानन्दजी के प्रति अपना आदर एवं सम्मान व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि योगी अमर होते हैं; उनका अस्तितत्त्व कभी भी समाप्त नहीं होता, बल्कि वे सदा हमारे साथ रहते हैं। उन्होंने अन्त में कहा कि एक ऐसे महापुरुष का अनुभव पाकर वे धन्य अनुभव कर रहे हैं जिनकी आत्मा अमर है। प्रधानमंत्री जी ने गुरुजी द्वारा प्रारम्भ की गई महान् परम्परा, सभी सन्तों, एवं सभी सत्यान्वेषियों को नमन करते हुए अपना संबोधन समाप्त किया।

प्रधानमंत्री जी के हृदय से निकले इस संबोधन की सभी श्रोताओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर सराहना की। उन्हें गुरुजी की कविता माय इण्डिया के हिन्दी अनुवाद की एक मढ़ी हुई प्रति भेंट की गई। यह एक दिव्य संयोग ही था कि आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने थोड़ी देर पहले ही अपने संबोधन में इसी कविता की पंक्तियाँ पढ़ी थीं।

प्रधानमंत्री, श्री नरेन्द्र मोदी, संस्मरणात्मक डाक टिकट जारी कर स्टाम्प एलबम प्रदर्शित करते हुए। वाईएसएस निदेशक मण्डल के सदस्य भी मंच पर उपस्थित हैं (बाएं से) स्वामी श्रद्धानन्द, शुद्धानन्द, स्मरणानन्द, विश्वानन्द, एवं नित्यानन्द, तथा श्री कमल नयन बक्शी।

प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा इस कार्यक्रम को प्रमुखता से प्रकाशित किया गया। संस्मरणात्मक डाक टिकट के प्रथम दिवस आवरण को स्वैच्छिक दान के आधार पर उपलब्ध कराया गया। यह वास्तव में एक ऐसा कार्यक्रम था जो वाईएसएस की शताब्दी के लिए सर्वथा उपयुक्त था, और इस कार्यक्रम में उपस्थित लोगों की स्मृति में लंबे समय तक बना रहेगा। हम उन सभी वॉलंटियर्स के आभारी हैं जिन्होंने इस कार्यक्रम के सफ़लतापूर्वक आयोजन के लिए रात और दिन पूरी भक्ति तथा समर्पण के साथ कार्य किया।

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