पुण्य-स्मृति में : स्वामी आनन्दमय गिरि (1922–2016)

6 सितम्बर, 2016

परमहंस योगानन्दजी द्वारा दीक्षित उनके शिष्य और 65 से अधिक वर्षों तक योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के एक संन्यासी रहे, हमारे श्रद्धेय स्वामी आनन्दमयजी का, मंगलवार शाम 6 सितम्बर, 2016 को लॉस एंजिलिस में माउंट वाशिंगटन स्थित एसआरएफ़ के अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय में शांतिपूर्ण ढंग से निधन हो गया।

वाईएसएस/एसआरएफ़ के एक अत्यधिक प्रिय एवं सम्माननीय संन्यासी के रूप में, स्वामी आनन्दमय ने अपने निःस्वार्थ जीवन तथा आध्यात्मिक जीवन एवं परमहंस योगानन्दजी की क्रियायोग शिक्षाओं की गहन समझ के द्वारा हजारों लोगों को प्रेरित कर उनका उत्थान किया। उन्होंने विश्व-भर में उन अनगिनत आत्माओं के आध्यात्मिक जीवन में एक स्थायी विरासत को रख छोड़ा है जिनकी उन्होंने सहायता की, और इतने वर्षों तक ईश्वर के मार्ग पर प्रोत्साहित किया।

स्मृति सभा योजनाएँ

वाईएसएस आश्रमों और केन्द्रों में एक सार्वजनिक स्मृति सभा आयोजित की गई:

रविवार, 25 सितम्बर, 2016

योगदा सत्संग मठ, दक्षिणेश्वर : सुबह 10:30 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक

योगदा सत्संग शाखा मठ, राँची : सुबह 10:00 बजे से 11:30 बजे तक

योगदा सत्संग शाखा आश्रम, नोएडा : सुबह 10:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक

वाईएसएस केन्द्र

योगदा सत्संग ध्यान केन्द्र, बैंगलोर : सुबह 10:00 बजे से दोपहर 12:15 बजे तक

योगदा सत्संग ध्यान केन्द्र, चंडीगढ़ : सुबह 10:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक

योगदा सत्संग ध्यान केन्द्र, दिल्ली : सुबह 10:00 बजे से 11:30 बजे तक

योगदा सत्संग ध्यान केन्द्र, लखनऊ : सुबह 09:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक, उसके बाद वीडियो

योगदा सत्संग ध्यान केन्द्र, मुम्बई : दोपहर 12:30 बजे से 02:00 बजे

योगदा सत्संग ध्यान केन्द्र, राजमुंदरी : सुबह 11:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक

आप स्मृति सभा में भाग लेने में सक्षम हुए या नहीं, हम आपको आत्मिक रूप से हम सभी के साथ सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित करते हैं क्योंकि हम स्वामी आनंदमॉय को दिव्य स्वतंत्रता और आनंद के सौभाग्यशाली क्षेत्रों में उनके परिवर्तन के दौरान अपना प्रेम और आभार भेजते हैं, और हम उनके प्रेरक तथा अनुकरणीय जीवन में आनन्दित होते हैं।

एक संक्षिप्त जीवनी

ज्यूरिख, स्विट्जरलैंड में 1 नवंबर, 1922 को हेनरी शॉउफ़ेलबर्गर के नाम से जन्मे स्वामी आनन्दमय ने अपनी किशोरावस्था में ही पौर्वात्य दर्शन का परिचय प्राप्त किया था और उसके बाद शीघ्र ही आध्यात्मिक ज्ञान की अपनी खोज प्रारम्भ की। लेकिन वे आश्चर्य करते थे कि कैसे वे अपने मार्गदर्शन के लिए एक प्रबुद्ध गुरु को प्राप्त करेंगे? “अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद अपने पिता के व्यवसाय में मैंने दो निराशा से भरे वर्ष बिताए.” वे याद किया करते। “तब तक मैंने हिंदू दर्शन में अपनी रुचि को त्याग दिया था, क्योंकि एक गुरु को पाना पूरी तरह से निराशाजनक प्रतीत होता था। मैंने कला के क्षेत्र में अपने कॅरियर की शुरूआत की और तीन साल बाद मुझे संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रसिद्ध वास्तुकार फ्रैंक लॉयड राइट के साथ अध्ययन करने के लिए आमंत्रित किया गया।” वे 1948 में अमेरिका आए और तुरन्त ही उन्हें परमहंस योगानन्द की Autobiography of a Yogi (योगी कथामृत) पुस्तक प्राप्त हुई। “मैंने बेसब्री से पुस्तक को पढ़ा,” उन्होंने बताया। “मैं अपने हृदय में जानता था कि जो मैं चाहता था वह मुझे मिल गया है और मैंने परमहंस योगानन्दजी की शिक्षाओं का अध्ययन करने तथा ईश्वर की खोज करने का मन बना लिया।” कुछ महीनों बाद, स्वामी आनन्दमय ने महान् गुरु परमहंस योगानन्दजी से मिलने की उम्मीद लेकर लॉस एंजिलिस की यात्रा की। उनकी पहली मुलाकात वाईएसएस/एसआरएफ़ हॉलीवुड मन्दिर में परमहंसजी द्वारा दिए गए एक रविवारीय सत्संग के अंत में हुई। “यह एक अविस्मरणीय अनुभव था,” उन्होंने कहा। “सत्संग के बाद, गुरुजी एक कुर्सी पर बैठे और अधिकांश लोग उनका अभिवादन करने आगे गये। अंत में जब मैं उनके सामने खड़ा हुआ, उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और मैंने उन गहरे चमकदार सौम्य नेत्रों में देखा। कोई कुछ नहीं बोला। परन्तु उनके हाथों और आँखों के माध्यम से मुझमें आते एक अवर्णनीय आनन्द का मैंने अनुभव किया।” स्वामी आनन्दमय ने 1949 में एक संन्यासी के रूप में सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप आश्रम में प्रवेश किया और 1952 में महान् गुरु के निधन होने तक उन्हें परमहंसजी से व्यक्तिगत प्रशिक्षण प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। नवंबर 1957 में उन्होंने आनन्दमय (“आनन्द में लीन”) नाम के साथ संन्यास धारण किया और अप्रैल 1958 में उन्हें वाईएसएस/एसआरएफ़ मिनिस्टर की उपाधि प्राप्त हुई, दोनों समारोह श्री दया माता द्वारा संचालित किए गए। एक संन्यासी शिष्य के रूप में अपने दीर्घ जीवन में उन्होंने अनेक प्रकार से अपने गुरु के कार्य में सेवा प्रदान की। उनकी प्रारंभिक सेवाओं में सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप लेक श्राइन के 1950 में इसके उद्घाटन से पहले भूदृश्य निर्माण (land-scaping) का कार्य, हॉलीवुड मन्दिर और आश्रम केन्द्र के मैदान में इण्डिया हॉल तथा लोटस टावर का निर्माण, तथा हॉलीवुड के एसआरएफ़ कैफ़े में एक बावर्ची का कार्य शामिल थे। उन्होंने 1950 के दशक में एक मिनिस्टर के रूप में कार्य करना शुरू किया, और इसके बाद के वर्षों में वे एसआरएफ़ के हॉलीवुड, एन्सिनिटस, फीनिक्स, लेक श्राइन, पैसेडेना और फ़ुलर्टन मन्दिरों के मिनिस्टर-इन-चार्ज थे। इसके अलावा, उन्होंने भारत की अनेक यात्राएँ कीं और परमहंसजी की योगदा सत्संग सोसाइटी को अपनी सेवा प्रदान की, अनेक क्रियायोग दीक्षा समारोहों का आयोजन किया, और देश भर में बड़ी संख्या में लोगों को प्रवचन दिये। अनेक वर्षों तक वे विभिन्न एसआरएफ़ आश्रम केन्द्रों के प्रभारी भी रहे। स्वामी आनन्दमय कई वर्षों तक योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया और सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के निदेशक मण्डल के एक सदस्य रहे। श्री दया माता ने उन्हें एसआरएफ़ संन्यासियों के आध्यात्मिक मार्गदर्शन के प्रभारी का भी उत्तरदायित्व दिया, और एक सर्वप्रिय सलाहकार तथा परामर्शदाता के रूप में उन्होंने अनेक दशकों तक इस पद पर कार्य किया। परमहंसजी ने स्वामी आनन्दमय को बताया था कि एक शिक्षक और सार्वजनिक वक्ता होना उनके लिए नियत था, और एक मिनिस्टर की इस भूमिका के लिए उन्हें लंबे समय तक और व्यापक रूप से याद किया जाएगा। चार दशकों तक संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, और भारत की व्यापक यात्राओं के दौरान, स्वामी आनन्दमय की गिनती वाइएसएस/एसआरएफ़ के सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सम्मानित संन्यासियों में होने लगी थी, और उन्होंने परमहंस योगानन्दजी की शिक्षाओं की सटीक प्रस्तुतियों, गुरुजी के साथ अपने अनुभवों के व्यक्तिगत संस्मरणों, और अपने विज्ञ तथा सदय व्यक्तिगत परामर्श द्वारा वाईएसएस/एसआरएफ़ सदस्यों तथा गैर-सदस्यों दोनों को ही समान रूप से प्रेरित किया।

एक प्रिय संन्यासी को प्रेमपूर्ण प्रणाम

स्वामी आनन्दमय को अपने प्रेमपूर्ण प्रणाम भेजते हुए, हम इस विचार से स्वयं को सांत्वना दे सकते हैं कि अब वे ईश्वर और गुरु के साथ एक हो गये हैं, जिनके लिए उन्होंने इतनी पूर्णता से अपना जीवन समर्पित कर दिया था। हम अनेक ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग के लिए भी आभारी हो सकते हैं जिनमें उनका उत्साहजनक, व्यावहारिक मार्गदर्शन, और उनकी शिशुसुलभ सौम्यता संरक्षित है, जैसा कि हम उनके प्रेरणादायी और अनुकरणीय जीवन के लिए आनन्दित होते हैं। हम आपको एसआरएफ़ वेबसाइट और एसआरएफ़ YouTube चैनल पर जाने के लिए आमंत्रित करते हैं कि आप स्वामी आनन्दमय के साथ के इन विशेष क्षणों का अनुभव ले सकें।

वाईएसएस के ऑनलाइन बुकस्टोर में स्वामी आनंदमय द्वारा ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग भी उपलब्ध हैं।

शेयर करें