प्रधानमंत्रीजी की योगदा संन्यासियों से भेंट

26 अप्रैल, 2016

4 मार्च 2016 को, भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी ने योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया के जनरल सेक्रेटरी स्वामी स्मरणानन्दजी से भेंट की..

यह भेंट संसद भवन नई दिल्ली में माननीय प्रधानमंत्री जी के कार्यालय में हुई। स्वामी स्मरणानन्दजी के अतिरिक्त, वरिष्ठ सन्यासी स्वामी नित्यानन्दजी और स्वामी ईश्वरानन्दजी (वाईएसएस निदेशक बोर्ड के सदस्य) भी इस में शामिल हुए। संसद में राज्य सभा के सदस्य श्री भूपेंद्र यादव जी भी इस भेंट के समय उपस्थित थे।

सन्यासियों ने प्रधानमंत्री मोदीजी को जानकारी देते हुए बताया कि, भारत व अन्य देशों में योग की गहन शिक्षा का प्रसार करने वाले अग्रदूत श्री परमहंस योगानन्दजी द्वारा प्रारंभ किए गए कार्य को सौ वर्ष पूर्ण होने वाले है; इस कार्य की शुरुआत 1917 में भारत में की गई। उन्होंने प्रधानमंत्रीजी को वाईएसएस/एसआरएफ़ अध्यक्ष श्री मृणालिनी माताजी का पत्र भी भेंट स्वरूप दिया, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्रीजी द्वारा संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस स्थापना में उनकी अग्रणी भूमिका के लिए आभार व्यक्त किया। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस अब हर वर्ष 21 जून को मनाया जाता है।

YSS monks presents Bhagavan Krishna's Picture to Narendra Modi
(बाईं से दाईं ओर) स्वामी स्मरणानन्द, भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, स्वामी नित्यानन्द, स्वामी ईश्वरानन्द और संसद के सदस्य श्री भूपेंद्र यादव।

प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की स्थापना का प्रस्ताव सितम्बर 2014 में दिया। उन्होंने कहा “योग भारत की पुरातन परंपरा का एक बहुमूल्य उपहार है। इसमें शरीर व मन; विचार व कर्म; संयम व तृप्ति; मानव व प्रकृति में सामंजस्य समाहित हैं। यह स्वास्थ्य व कल्याण के लिए एक सर्वांगीण पद्धति है।” 175 देशों की सम्मति से इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकृति दी गयी — यह संगठन के इतिहास में एक रिकॉर्ड समर्थन था।

श्री मृणालिनी माताजी का प्रधानमंत्रीजी को पत्र

प्रधानमंत्रीजी को अपने पत्र में श्री मृणालिनी माताजी ने लिखा :

“एक प्रबल योगाभ्यासी और भारत के आध्यात्म से जुड़े होने के नाते आप संभवत: आध्यात्मिक गौरव ग्रंथ — योगी कथामृत के रचयिता श्री श्री परमहंस योगानन्द के जीवन व शिक्षाओं से अवगत होंगे। यद्यपि उनके जीवन का अधिक समय पश्चिम में योग विज्ञान व ध्यान के प्रसार में व्यतीत हुआ, जिसके द्वारा हम ईश्वर को व्यक्तिगत रूप से अनुभव कर पाते हैं, परंतु परमहंसजी के हृदय में भारत के प्रति गहन प्रेम भाव था और उन्होंने अपनी कविता ‘मेरा भारत’ की पंक्तियों का उच्चारण करते हुए अपना शरीर त्याग दिया। पूर्व और पश्चिम की एकात्मकता को प्रोत्साहित करना उनके मुख्य उद्देश्यों में से एक था और उनके इसी सार्वभौमिक संदेश के फलस्वरूप कालांतर में अनेकों जिज्ञासु विभिन्न धर्मों और देशों से उनकी ओर आकृष्ट होते रहे हैं। उनकी भविष्यवाणी थी कि, एक दिन योग का संदेश मानवता को ईश्वर की प्रत्यक्ष अनुभूति करवाने में सक्षम होगा और संपूर्ण विश्व में शांति का द्योतक सिद्ध होगा। इसीलिए मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई जब आपके अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की स्थापना के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अन्य देशों के रिकॉर्ड समर्थन से जल्द ही स्वीकृति दी गयी। 21 जून 2015 को प्रथम अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर विश्व-भर से योगाभ्यास करने आए लोगों के समूह को देखकर अत्यंत प्रोत्साहना मिली। मैं यह निश्चित रूप से कह सकती हूँ कि इस वार्षिक उत्सव में समय के साथ जनसमूह की सहभागिता बढ़ेगी और इसी के साथ क्रमशः संपूर्ण समाज की चेतना का भी विकास होगा।…

“योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़ रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप की ओर से, मैं आपको शुभकामनाएँ भेजती हूँ और प्रार्थना करती हूँ कि भारत के कल्याण व विकास के लिए आपके कार्य में ईश्वर आपका मार्गदर्शन करें व् आशीर्वाद दें।”

वाईएसएस संन्यासियों द्वारा प्रधानमंत्रीजी को परमहंस योगानन्दजी की योगी कथामृत के संस्कृत व गुजराती संस्करण भेंट किए गए; श्रीमद्भगवद्गीता पर योगानन्दजी की अनुवादित टीका ‘ईश्वर-अर्जुन संवाद’ एवं ध्यान आसन में भगवान् कृष्ण की एक फ्रेम की हुई तस्वीर भी भेंट स्वरूप प्रदान की गई। इसके अतिरिक्त, प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए अनुदान राशि भी दी गई।

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