“प्रारम्भ करें!” श्रद्धा माता द्वारा

10 जनवरी, 2023

श्रद्धा माता (1895–1984) परमहंस योगानन्दजी से सन् 1933 में मिलीं, और इसके कुछ ही समय पश्चात् सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप की संन्यास परम्परा में प्रवेश किया। बाद में उन्हें परमहंस योगानन्दजी ने सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के निर्देशक-मण्डल में नियुक्त किया, और जीवन-पर्यन्त इस पद पर रहते हुए वे अपनी सेवाएं प्रदान करती रहीं। यह लेख उन्होंने 1935 में ईस्ट-वेस्ट (अब सेल्फ़-रियलाइज़ेशन/योगदा सत्संग) पत्रिका के लिए लिखा था, लेकिन इसका संदेश हमेशा प्रासंगिक रहेगा — अब नए वर्ष की शुरुआत में या किसी भी समय आप उस बहुमूल्य अवसर का लाभ उठाना चाहते हैं जो वर्तमान समय आपको दे रहा है।

क्या आपकी एक गुप्त महत्त्वाकांक्षा है? यदि आपको चुनाव का विकल्प दिया जाए कि आज के दिन आप अपना जीवन नए सिरे से प्रारम्भ कर सकते हैं, तो आप क्या करेंगे?

जीवन आपके सामने वह विकल्प प्रस्तुत कर रहा है। आपकी इच्छानुसार आकार लेने के लिए समय की लचीली मिट्टी आपके हाथों में है। असम्भव प्रतीत होता कार्य प्रायः सर्वाधिक तर्कसंगत होता है। वह कार्य जिसके बारे में आपने सोच रखा है कि आप नहीं कर सकते — उसे प्रारम्भ करें।

एक निश्चित तरह से सोचने की आदतों की स्वयं-धारित बेड़ियों को उतार फेंकें क्योंकि एकमात्र ये ही आपको सीमाओं में बांधकर रखती हैं। मन की आवाज़ को ध्यान से सुनें। आत्मा रूपी कुएँ की गहरी खुदाई करने वाले के जीवन में कई आश्चर्यजनक शुभ उपहार रहते हैं।

कोई भी लक्ष्य एक दिन में प्राप्त नहीं किया जाता। महत्वपूर्ण बात तो है कि आप अभी प्रारम्भ करें — कल नहीं। प्रारम्भ करें! यह जादुई क्षण अवसरों के खजानों से भरी गुफाओं में प्रवेश की कुंजी है।

अपनी प्रतिभाओं के सरोवर को काम में लायें। इसका स्रोत अनन्त सत्ता में स्थित है। पहला कदम उठाएं, चाहे जितना भी छोटा हो। आपकी शक्ति, जब आपसे निकलेगी तो बर्फ के गोले की तरह वह स्वतः ही और शक्तिशाली होती जाएगी।

“कर्तव्य परायणता की पराकाष्ठा ही योग्यता है।” आपमें सुप्त प्रतिभा एक फल देने वाला बीज है जिसे आपकी देखरेख में दिया गया है। क्या आपको यह अधिकार है कि आप इसे टाल-मटोल की शुष्क मिट्टी में सूख जाने दें? जीवन आपसे मात्र इतनी ही अपेक्षा रखता है कि उसने आपके भीतर जो बोया है आप निष्ठापूर्वक उसे उगाकर उसकी फसल काटें।

उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक सारी वस्तुएँ सदैव हमारे पास ही उपलब्ध होती हैं। ज्ञान के उन्मीलित नेत्रों द्वारा उनकी पहचान करें।

तनाव में एवं फल की आशा से भरे प्रयासों के साथ काम न करें, बल्कि सहजता और प्रसन्नता से काम करें। लक्ष्य को कर्म से अधिक प्रेम न करें। सतर्क मन एवं प्रेमपूर्ण हाथों से वर्तमान के उज्ज्वल धागों को अनन्त के साँचे में बुनें।

और यदि आपके द्वारा निर्मित कोई सुंदर पात्र लापरवाहीपूर्ण स्पर्श या उन्मुक्त हवाओं द्वारा तोड़ दिया जाए, तो विलाप न करें। समझ से अधिक परिपक्व हुए हृदय से अधिक नियंत्रित हाथ एवं अधिक पैनी नजर से, पुनः प्रारम्भ करें! किन्तु प्रारम्भ तो करें दक्षता केवल इसी में निहित है।

“तुम क्या बनने वाले हो यह अभी प्रकट नहीं है।” (1 जॉन 3:2) बीज के हृदय में पुष्प सोता है। किन्तु क्या बीज अपना प्रारम्भ एवं अन्त जानता है? गर्मी एवं नमी को यथाशक्ति अवशोषित करके, उसकी आत्म-चेतना का हृदय विस्तारित होता जाता है और एक दिन आनन्द में फूट कर सूर्य का अभिवादन करता है।

जीवन आपको कर्म करने के लिए मना रहा है, आपसे विनती कर रहा है, आपको आदेश दे रहा है। आज ही आपके भीतर इसकी तीव्र पुकार के प्रति सचेत हो जाएं। अपनी सीमाओं के पिंजरे को तोड दें। प्रकाश की ओर मुड़ें और एक प्रबुद्ध मानव-पुत्र के रूप में आगे कदम बढाएं।

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