गुरु पूर्णिमा पर श्री श्री मृणालिनी माता का एक संदेश – 2014

22 अगस्त, 2014

प्रिय आत्मन्,
इस पावन दिवस पर, सारे भारतवर्ष में भक्त अपने गुरु को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं—गुरु वह पवित्र माध्यम हैं जिनके द्वारा ईश्वर के शाश्वत आशीर्वाद उन सभी भक्तों को प्राप्त होते हैं जो इस दिव्य प्रतिनिधि का श्रद्धा एवं भक्ति के साथ अनुसरण करते हैं। मेरी यह प्रार्थना है कि इस अवसर पर जब हम अपने गुरुदेव श्री श्री परमहंस योगानन्द के चरणों में अपनी आत्मा का प्रेम और निष्ठा अर्पित करेंगे, तब अपने जीवन में उनके रूपांतरकारी प्रभाव का स्मरण करते हुए हमारे हृदय गुरुदेव के प्रति कृतज्ञता से पुन: भर जाएं। एक सदगुरु, माया की आंधियों से हमारी रक्षा करने वाला परम आश्रय होता है, और हमें ईश्वर के अपरिवर्तनशील सान्निध्य की शरण में लाने वाला भरोसेमंद मार्गदर्शक भी है।
जीवन हमें निरंतर एवं अक्सर विस्मयकारी अनुभवों, सूचनाओं, और विकल्पों की विविधताओं से झकझोरते रहता है। क्योंकि हम स्वयं को ऐसे नश्वर प्राणियों के रूप में देखते हैं, जो कि परिस्थितियों के, तथा हमारे अपने ही मानव स्वभाव द्वारा थोपी गईं सीमितताओं के अधीन हैं, अत: हम कभी-कभी स्वयं को अपने नियंत्रण से परे की शक्तियों की दया पर निर्भर पाते हैं। परंतु गुरु, जिनकी निर्विकार दृष्टि माया के दुरूह पर्दे को भेद देती है, हमें हमारे वास्तविक स्वरूप में देखते हैं—ईश्वर के आलोक से दमकती अमर आत्माओं के रूप में, जो ईश्वर के सारे गुणों को अभिव्यक्त करने में समर्थ हैं। गुरु के माध्यम से ईश्वर ही स्वयं हमारी सहायता के लिए आते हैं, ताकि हम क्षुद्र अहं की सीमाओं से निकलकर आत्मा के सुविस्तृत दृष्टिकोण से संपन्न होकर जी सकें। जैसा कि गुरुजी ने समझाया है, “गुरु जागृत ईश्वर है जो शिष्य के भीतर सो रहे ईश्वर को जगा रहा है।” वे हमें वह सब प्रदान करते हैं जिसकी अपने अंदर की दिव्य छवि को जागृत करने के लिए हमें आवश्यकता होती है: वे प्रविधियाँ जो हमें चंचल मन के परे ले जाती हैं ताकि हम उस अनंत चेतना का स्पर्श कर सकें जो हमारा पोषण करती है; आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए वे शाश्वत सत्य, जो इस जगत के नित्य-बदलते मूल्यों के बीच हमें आत्मा की मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं; और उनका नि:शर्त प्रेम। उन्होंने अपने एक प्रिय शिष्य को लिखा था, “मैं तुम्हारे प्रति अपने कर्तव्य का त्याग कभी नहीं करूंगा।…मैं न केवल सदा तुम्हें क्षमा करूंगा, बल्कि चाहे जितनी बार भी तुम गिरो मैं तुम्हें हमेशा उठाऊँगा।” उनकी सहायता तथा आशीर्वादों की शक्ति कर्म एवं गहरे पैठी आदतों के प्रभाव से कहीं अधिक शक्तिशाली होती है, और उनकी सहायता से, सारी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। हम में आत्म-ज्ञान को जगाने हेतु कोई भी प्रयास या त्याग उनके लिए बहुत बड़ा नहीं है।
गुरु का हम में विश्वास होता है, और यह उनमें हमारा विश्वास ही है, जो उनके मार्गदर्शन को आत्मसात करने एवं अपने जीवन में उतारने की तत्परता के रूप में अभिव्यक्त होता है, और जो उनकी आध्यात्मिक विपुलता को ग्रहण करने के लिए हमारे मन एवं हृदय के बाढ़-द्वारों को खोल देता है। अहं के प्रतिरोध पर विजय प्राप्त करने के लिए अपनी स्वतंत्र इच्छा-शक्ति का उपयोग कर, आप उन्हें अपनी चेतना को परिवर्तित तथा निर्मल करने की अनुमति देते हैं। जब आप उन्हें अपनी आत्मा का शाश्वत सखा बनाने के लिए प्रतिदिन प्रयासरत होते हैं तो आपके भीतर लगातार उनके प्रेमपूर्ण अवलंब का बोध विकसित होगा। जब आप उनकी शिक्षाओं का अध्ययन करते हैं, तो उनके शब्दों को अपनी चेतना में गहरे उतरते जाने दें, जब तक कि वे आपके अंतर्मन में उनकी सजीव वाणी और उनके आशीर्वाद भरे हाथ का सांत्वनादायी स्पर्श न बन जाएं, यह स्मरण कराते हुए कि आप कभी भी अकेले नहीं हैं। और जब आप ध्यान करें, तो अपनी भक्ति के द्वारा अपनी आत्मा की प्रशांतता में उनका आह्वान करें। उस पवित्र मौन में, वे आपको द्वैत के भ्रम-जाल से उठाकर ईश्वर के अनंत प्रेम एवं आनंद की परम-संतोषप्रद एकात्मता में स्थापित करने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। जय गुरु!

ईश्वर एवं गुरुदेव के अनवरत आशीर्वादों सहित,
श्री श्री मृणालिनी माता

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