परमहंस योगानन्दजी के आश्रमों से जन्माष्टमी पर संदेश

5 अगस्त, 2021

जन्माष्टमी-2021

"रूप और आकार में सुन्दर, आकर्षण और व्यवहार में अत्यन्त सम्मोहक, दिव्य प्रेम की मूर्ति, सबके हृदयों को आनन्दित करने वाले, छोटे बालक श्रीकृष्ण, समुदाय में प्रत्येक को परमप्रिय थे...."

— परमहंस योगानन्द, “ईश्वर-अर्जुन संवाद : श्रीमद्भगवद्गीता” से

प्रियजनों,
भगवान् श्रीकृष्ण की जयंती पर, जब हम पूरे संसार में फैले असंख्य भक्तों के साथ मिलकर आनन्दोल्लास के साथ इसे मनाते हैं और दिव्य प्रेम के इस महान् अवतार को अपना प्रेम, भक्ति और कृतज्ञता अर्पित करते हैं, मैं आप सभी का प्रेमपूर्ण अभिवादन करता हूँ।

इस जन्माष्टमी पर मेरी प्रार्थना है कि श्रीकृष्ण की विशेष कृपा और आशीर्वाद हमें यह प्रेरणा दे कि दिव्य ज्ञान द्वारा सभी कर्मों को निर्देशित करते हुए एक संतुलित जीवन जीने के उनके उदाहरण को हम अपने जीवन में उतारें। जिस कठिन समय से हम गुज़र रहे हैं, उसे समझने के लिए भगवद्गीता में सन्निहित श्रीकृष्ण की सार्वभौमिक शिक्षायें सटीक और गहन ज्ञान प्रदान करती हैं। उन शिक्षाओं को आत्मसात कर, आइए हम अपने अंतर में आत्मा के अविनाशी गुणों — धैर्य, आस्था, निर्भीकता — को जागृत करें, यह स्मरण रखते हुए कि हमारी परीक्षाएं हमें विह्वल करने के लिए नहीं बल्कि हमारे भीतर के शौर्य तथा अजेय दिव्य प्रकृति को उजागर करने के लिए आती हैं। भगवान् व उनके अवतारों पर प्रतिदिन ध्यान करने से, और यह विश्वास बनाए रखने से कि हर परिस्थिति में वे हमारी सहायता करेंगे, हम अनुभव करते हैं कि भीषणतम कठिनाइयों के बीच भी हम साहस, मन की तटस्थता, और रचनात्मक अंतर्ज्ञान से भरपूर हैं।

यही संदेश है जो भगवान् कृष्ण, हममें से प्रत्येक के अंतर में स्थित भक्त-अर्जुन को उद्घोषित करते हैं। गीता में जिसका गुणगान किया गया है, उस पावन विज्ञान – क्रियायोग – के अभ्यास द्वारा अपने हृदय, मन और आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़कर, हम अपने व्यक्तिगत कुरुक्षेत्र के आंतरिक संग्रामों को शांति व विवेक द्वारा जीतने के लिए अधिक सक्षम हो जाते हैं। प्रेम द्वारा निर्देशित और शांत मन से किए गए उचित कर्मों के माध्यम से; प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर की संतान के रूप में देखते हुए, आदर और सम्मान के साथ हर एक से सामंजस्यपूर्ण व्यवहार करते हुए, हम अपने परिवारों और समुदायों में शांति के दूत बन जाते हैं।

अपनी आत्मा के अंतर्निहित गुणों को व्यक्त कर, जैसाकि भगवान् कृष्ण और सभी महान विभूतियों ने किया, हम ईश्वरीय चेतना में जीने और सेवा करने में सक्षम हो जाते हैं, और जो भी हमारी राह में आते हैं उन पर ईश्वर के प्रकाश व प्रेम को बिखेर पाते हैं । आइए हम परमात्मा की समग्रता में साथ चलें, परम प्रिय कृष्ण के पदचिह्नों का विनम्रता से अनुसरण करते हुए जो कि समस्त मानवता के लिए “दिव्य प्रेम की मूर्ति, सबके हृदयों को आनन्दित करने वाले” हैं। जब हम दिव्य बनने की इच्छा रखते हैं, उससे हम उन ऊर्जाओं की शक्ति बढ़ा देते हैं जो सतत और निस्संदेह रूप से एक बेहतर विश्व को विकसित कर रही हैं।

भगवान् श्री कृष्ण का संदेश और आशीर्वाद आपका सतत मार्गदर्शन करे!

स्वामी चिदानन्द गिरि

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