परमहंस योगानन्दजी के प्रवचनों एवं लेखन से उद्धृत ज्ञान तथा मार्गदर्शन

अपनी सभी समस्याओं का समाधान प्राप्त करने के लिए परमात्मा की सहायता लें। जब असहनीय चुनौतियों का पहाड़ आप पर टूट पड़े, तब साहस और सूझबूझ को न खोएं। अपनी अंतर्ज्ञानजनित सहज बुद्धि तथा ईश्वर में आस्था को सक्रिय रखिए, और उस संकट से बच निकलने का कोई-न-कोई रास्ता खोजने का प्रयास कीजिए, चाहे वह रास्ता कितना भी असंभाव्य क्यों न लगे; और आपको मार्ग मिल जाएगा। अंत में सब ठीक हो जाएगा क्योंकि परमात्मा ने जीवन के क्षणभंगुर अनुभवों में दिखने वाले सतही विरोधाभासों के पीछे अपना वरदान छिपाकर रखा हुआ है।

— Wine of the Mystic से उद्धृत

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किसी भी चीज़ से न डरें। आप जब एक तूफानी लहर पर थपेड़े खा रहे होते हैं तब भी आप सागर की गोदी में ही होते हैं। हमेशा परमात्मा की छुपी हुई चेतन सत्ता पर विश्वास बनाए रखिए। मन को समत्व भाव में स्थिर रखिए और कहिए — “मैं निडर हूँ; मैं परमात्मा के दिव्य तत्त्व से बना हूँ। मैं परमात्मा की ज्योति की चिंगारी हूँ। मैं ब्रह्मांडीय ज्वाला का एक परमाणु हूँ । मैं परमपिता परमेश्वर के ब्रह्मांड-स्वरूप शरीर की एक कोशिका हूँ। मैं और मेरे परमपिता एक हैं।”

सच्ची स्वतन्त्रता केवल परमात्मा में विद्यमान है। इसलिए प्रातः - सायं ध्यान की गहराई में उतर कर उनसे संपर्क करने का प्रयास करते रहें…. योग यह शिक्षा देता है कि जहाँ परमात्मा है वहाँ डर और दुःख नहीं टिक सकते। एक सफल योगी टूटते विश्वों के धमाकों के बीच भी अविचलित बना रह सकता है।

— परमहंस योगानन्द

परमात्मा स्वास्थ्य, समृद्धि, विवेक एवं शाश्वत आनंद के परम स्रोत हैं। हम परमात्मा से युक्त होकर अपना जीवन परिपूर्ण करते हैं। उनके बिना जीवन अधूरा रहता है। अपना ध्यान उस सर्वशक्तिमान सत्ता पर एकाग्र करें जो आपको जीवन, शक्ति और विवेक प्रदान कर रही है। प्रार्थना करें कि सत्य का बोध आपके मन में अविरल प्रवाहित होता रहे, शरीर में निरंतर शक्ति संचारित होती रहे, और आत्मा में निरंतर आनंद प्रवाहित होता रहे। बंद आँखों के ठीक पीछे ब्रह्मांड की अद्भुत शक्तियाँ; सभी महान् संत; और असीम, अनंत सत्ता विद्यमान है। ध्यान का अभ्यास करते रहें, और आपको सर्वव्यापी परम सत्य की अनुभूति होगी और आप अपने जीवन में तथा सृष्टि की महिमाओं में उस सत्ता को रहस्यमय रूप से काम करते हुए देखेंगे।

— Journey to Self-realization से उद्धृत

आप सभी ईश्वर हैं, यदि जान सकें तो। आपकी चेतना की तरंग के पीछे परमात्मा की उपस्थिति का महान् सागर है। आपको अपने अंदर झाँकना चाहिए। दुर्बलताओं से भरी इस शरीर रूपी नन्ही-सी लहर पर अपना ध्यान एकाग्र मत कीजिए; उस लहर के पीछे देखिये। आँखें बंद कीजिए और जिधर भी आप दृष्टिपात करेंगे आपके समक्ष विशाल सर्वव्यापकता उपस्थित हो जाएगी। आप उस ब्रह्मांड के केन्द्र में स्थित हैं और जैसे-जैसे आप अपनी चेतना को शरीर व शरीर के अनुभवों से ऊपर उठाने लगते हैं वैसे-वैसे आप अपने ब्रह्मांड को उस आनंद से परिपूर्ण अनुभव करने लगते हैं जो तारों को प्रकाशित कर रहा है, और हवा और आंधी को शक्ति प्रदान कर रहा है। ईश्वर हमारे सभी सुखों एवं प्रकृति की सभी अभिव्यक्तियों के मूल स्रोत हैं....

स्वयं को अज्ञान के अंधकार से जगाइए। आपने भ्रम की निद्रा में आँखें बंद कर रखी हैं। जागिये! आँखें खोलिए और परमात्मा का कांतिमय स्वरूप देखिये — वह अतिविशाल छटा जिसमें ईश्वर का प्रकाश समस्त सृष्टि पर छाया हुआ है। मैं आपको दिव्य यथार्थवादी बनने के लिए कह रहा हूँ। तब आपको ईश्वर में सभी प्रश्नों के उत्तर प्राप्त हो जाएंगे।

— दिव्य प्रेम-लीला से उद्धृत

जो केवल अपने लिए समृद्धि चाहते हैं, वे अंत में अवश्य ही दरिद्र बनकर रह जाते हैं, या फिर मानसिक विकारों से पीड़ित होते हैं; किंतु जो वसुधैवकुटुंबकम में आस्था रखते हैं और जो सच्चाई से परोपकार करते हुए सारी सृष्टि को परिवार की तरह समझकर देखभाल व सेवा करते हैं, वे ऐसी सूक्ष्म शक्तियों को क्रियान्वित करते हैं जो उन्हें उस मंज़िल तक पहुँचा देती हैं जहाँ पहुँचकर उन्हें वह व्यक्तिगत समृद्धि प्राप्त हो जाती है जिसके वे न्यायोचित अधिकारी होते हैं। यह अकाट्य और गुप्त सिद्धांत है।

— योगदा सत्संग पाठमाला

इस संसार में हमेशा उथल-पुथल और कठिनाइयाँ रहेंगी। आप किस बात की चिंता कर रहे हैं? वहाँ जाइए जहाँ सिद्ध-महात्मा जा चुके हैं, परमात्मा की शरण में, जहाँ से वे सब कुछ देख रहे हैं और संसार की सहायता कर रहे हैं। आप हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाएंगे, और केवल आप ही नहीं बल्कि आपके वे सभी प्रियजन भी, जिनकी देखभाल की ज़िम्मेदारी हमारे परमपिता परमेश्वर ने आपको दी है।

— योगदा सत्संग पाठमाला

प्रभु को अपनी आत्मा का राखनहार बना लीजिए। जब भी जीवन में अंधेरे पथ पर चलना पड़े तो उन्हें अपना खोज दीप बना लीजिए। अज्ञान की अंधकारमयी रात्रि में वे आपके चन्द्रमा हैं। जब आप जागे होते हैं, उन समयों में वे आपके सूर्य हैं। आपके नश्वर जीवन के तमस आच्छादित सागर में राह दिखाने वाले ध्रुवतारा वे ही हैं। उनसे मार्गदर्शन मांगिए । संसार ऐसे ही उतार-चढ़ाव से भरा रहेगा। हम दिशा जानने के लिए किससे पूछें? उन पूर्वाग्रहों से नहीं जो हमारी आदतों से, परिवार, देश व संसार के प्रभावों से उत्पन्न होती हैं, बल्कि अपने अंदर परमसत्य की मार्गदर्शिका वाणी से।

— दिव्य प्रेम-लीला से उद्धृत

याद रखें, कि मन के लाखों तर्कों से बढ़कर है, बैठकर ईश्वर का तब तक ध्यान करना, जब तक कि आप भीतर शांति का अनुभव न कर लें। तब प्रभु से कहें, “मैं अकेला अपनी समस्या को हल नहीं कर सकता, चाहे मैं असंख्य अलग-अलग विचार भी सोचूँ; परन्तु इसे आपके हाथों में सौंप कर; सर्वप्रथम आपके मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करके, और फिर सम्भव समाधान के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचकर मैं इसका समाधान कर सकता हूँ।” ईश्वर उनकी सहायता अवश्य करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। ध्यान में ईश्वर से प्रार्थना करने के उपरान्त जब आपका मन शांत एवं विश्वास से भरपूर होता है, तो आप अपनी समस्याओं के अनेक समाधानों को देख सकते हैं; और क्योंकि आपका मन शांत है, इसलिए आप सर्वोत्तम समाधान को चुनने में सक्षम होते हैं। उस समाधान का अनुसरण करें और आपको सफलता मिलेगी। यह धर्म के विज्ञान को अपने दैनिक जीवन में लागू करना है।

— दिव्य प्रेम-लीला से उद्धृत

भय हृदय से उत्पन्न होता है। यदि आप कभी किसी बीमारी या दुर्घटना के भय पर विजय पाना चाहें, तो आपको गहरा, धीरे-धीरे और लयबद्ध रूप से कई बार साँस लेना और छोड़ना चाहिए और प्रत्येक बार साँस छोड़ने के बाद थोड़ा विश्राम करना चाहिए। यह रक्त संचार सामान्य करने में सहायता करता है। यदि आपका हृदय वास्तव में शांत है तो आप बिल्कुल भी भय का अनुभव नहीं करते।

— भयमुक्त जीवन से उद्धृत

आपको जिस किसी से भी डर लगता है उस पर विचार मत कीजिए और उसको परमात्मा के हाथों में सौंप दीजिए। उन पर विश्वास रखिए। अधिकतर कष्ट केवल चिंताओं के कारण होते हैं। जो समस्या अभी आप तक पहुँची ही नहीं उसको लेकर दुःखी क्यों होना? क्योंकि हमारे अधिकतर कष्ट डर से उत्पन्न होते हैं, जैसे ही आप डर को हृदय से निकाल बाहर करेंगे आप तत्क्षण मुक्त हो जाएंगे। तत्काल रोग का उपचार हो जाएगा। प्रत्येक रात सोने से पहले यह प्रतिज्ञापन कीजिए — "परमपिता मेरे साथ हैं; मैं पूर्णतया सुरक्षित हूँ।" मानसिक रूप से परमात्मा और उनकी ब्रह्मांडीय ऊर्जा को अपने चारों ओर अनुभव कीजिए। ओम् या भगवान् के नाम का तीन बार जप कीजिए। आपको उनके अद्भुत संरक्षण की अनुभूति होगी। निर्भय बनें…

जब भी आपको डर लगे, अपना हाथ अपने हृदय पर रखें। हाथ त्वचा के संपर्क में होना चाहिए; बाएं से दाएं की ओर हाथ फेरें और कहें — "परमपिता मैं मुक्त हूँ। मेरे हृदय के रेडियो से इस डर को दूर कर दीजिए।" जैसे आप एक साधारण रेडियो में किसी स्टेशन को मिलाते समय ट्यूनिंग करके शोरगुल हटा देते हैं, वैसे ही निरंतर बाएं से दाएं हाथ रगड़ने से आपके हृदय से डर बाहर निकल जाएगा और आपको परमात्मा के आनंद की अनुभूति होगी।

— मानव की निरन्तर खोज से उद्धृत

ईश्वर ने सुरक्षा के लिए हमें एक अत्यंत शक्तिशाली संयंत्र प्रदान किया है — किसी भी मशीनगन, विद्युत शक्ति, विषैली गैस या अन्य औषधि से कहीं अधिक प्रभावशाली — हमारा मन। मन को ही शक्तिशाली बनाने की आवश्यकता है…. जीवन नामक साहसी यात्रा का एक अति महत्त्वपूर्ण अंग मन को वश में करना और नियंत्रित मन को निरंतर परमात्मा में लगाना है। यह एक सुखमय, सफल अस्तित्त्व का रहस्य है।... यह मन की शक्ति के प्रयोग से एवं ध्यान द्वारा मन को परमात्मा में लगाने से प्राप्त होता है। रोग, निराशा, एवं आपदाओं पर विजय पाने के लिए सबसे सरल समाधान मन को परमात्मा में लगा देना है।

— मानव की निरन्तर खोज से उद्धृत

सच्चा सुख, स्थाई सुख, केवल परमात्मा में निहित है — "जिसे पाने से बड़ी और कोई भी उपलब्धि नहीं है।" उनमें ही एकमात्र सुरक्षा, एकमात्र शरण, सभी प्रकार के भय से मुक्ति संभव है। संसार में आपका और कोई सुरक्षा कवच नहीं है, और कोई स्वतंत्रता नहीं है। एकमात्र सच्ची स्वतंत्रता परमात्मा में ही है। इसलिए हर सुबह और रात ध्यान के अभ्यास द्वारा उनसे संपर्क करने का गहन प्रयास करते रहें, और साथ ही दिन भर अपने सभी दायित्वों और कार्यों को भी निभाते रहें। योग सिखाता है कि जहाँ परमात्मा है वहाँ न डर है, न दुःख। एक सफल योगी टूटते विश्वों के धमाकों के बीच भी विचलित नहीं होता; वह इस ज्ञान के कारण सुरक्षित अनुभव करता है: “प्रभु जहाँ मैं हूँ वहाँ आपको भी आना होगा।”

— दिव्य प्रेम-लीला से उद्धृत

आइए हम आत्माओं के एक संगठन के लिए तथा एक संयुक्त संसार के लिए अपने हृदय में प्रार्थना करें। यद्यपि हम वंश, जाति, वर्ण, श्रेणी व राजनैतिक पूर्वाग्रहों से बंटे हुए दिखाई देते हैं तथापि एक परमात्मा के अंश होने के नाते हम अपनी आत्मा में बंधुत्त्व भाव एवं वैश्विक एकता का अनुभव करते हैं। हम ऐसे संयुक्त संसार की रचना के लिए काम करें जिसमें प्रत्येक राष्ट्र की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो, और जो मनुष्य की जागृत अंतरात्मा के माध्यम से परमात्मा द्वारा निर्देशित हो। हम सब लोग अपने हृदय में घृणा एवं स्वार्थ से मुक्त होना सीख सकते हैं। हम सभी राष्ट्रों के मध्य अमन और शांति के लिए प्रार्थना करें, ताकि वे सभी हाथ मिलाकर एक नई उज्ज्वल सभ्यता के सिंहद्वार में से एक साथ प्रवेश कर सकें।

— Metaphysical Meditations से उद्धृत

सबसे महत्त्वपूर्ण बात जिस पर मैं बल देता हूँ वह है कि आप अपने ध्यान द्वारा परमात्मा की खोज में व्यस्त रहें... इस जीवन की परछाइयों के ठीक पीछे उनका अद्भुत प्रकाश विद्यमान है। ब्रह्मांड उनकी उपस्थिति का विशाल उपासना गृह है। जब आप ध्यान करेंगे तो आप सर्वत्र द्वार खुले पाएंगे जो उनकी ओर ले जाते हैं। जब आपका उनके साथ संवाद स्थापित हो जायेगा, तब संसार के सभी प्रकोप एकजुट होकर भी आपसे सुख एवं शांति नहीं छीन सकेंगे।

— World Crisis से उद्धृत

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