पुनर्जीवन पर ध्यान

A Meditation on Resurrectionपरमहंस योगानन्दजी ने सभी साधकों को ईस्टर पर्व के अवसर पर अपनी चेतना का विस्तार करके असीमित कूटस्थ चैतन्य—समस्त सृष्टि में निहित अंतर्यामी परमात्मा की चेतना का विस्तार, ब्रह्मांडव्यापी चेतना, परमात्मा के साथ तदात्मत:, जिसे जीसस, कृष्ण एवं अन्य अवतारों ने अभिव्यक्त किया, के साथ मिलाने के लिए उत्साहित किया। उनके द्वारा संचालित ध्यान सत्रों में से एक यहां दिया जा रहा है:)

क्राइस्ट पुनर्जीवित हो गए हैं। वह भौतिक, सूक्ष्म एवं कारण शरीर की सीमा से नितांत ऊपर उठकर सर्वव्यापी हो गए हैं। सर्वव्यापी कूटस्थ चैतन्य से एकात्म होकर वह प्रत्येक फूल के ह्रदय में, सूरज की प्रत्येक किरण में, मनुष्य के प्रत्येक महान विचार में सजीव हो चुके हैं। वह परमाणवीय युग में प्रकट हो चुके हैं, एवं इस युग की समस्त विनाशकारी गतिविधियां, नवजीवन, ज्ञान व वैश्विक प्रेम रूपी पालने में पल रही नवीन मानवता में उनकी आत्मा के जन्म को छिपा नहीं सकतीं।

वह हमारे मन में, हमारे हृदय में, हमारी आत्माओं में—सजीव हो चुके हैं। हमारे और उनके बीच अब लेश मात्र भी दूरी नहीं है। वह हमारे प्रेम की वाटिका में, हमारे पवित्र भक्ति भाव की वाटिका में, हमारे ध्यान व क्रिया योग की वाटिका में विचरण कर रहे हैं।

वह प्रत्येक परमाणु एवं कोशिका में सजीव हो गए हैं, वह बादलों में सजीव हो गए हैं, वह सभी ग्रहों में सजीव हो गए हैं। वह ब्रह्माण्डों में तथा ब्रह्माण्डों के परित: सर्वत्र बिखरी हुई रश्मियों और उन से परे व्याप्त निर्मल ज्योति में चेतन हो गए हैं। वह ब्रह्माण्डों से उठकर परम प्रशांत विश्वव्यापी चेतना में सजीव हो गए हैं। और आपके भक्ति भाव तथा क्रिया योग से वह आप में पुनः सजीव हो जाएंगे। जब आपका ज्ञान जागृत हो जाएगा, तब आप अपने अंतःकरण में क्राइस्ट के पुनरुत्थान का अनुभव करेंगे। और ध्यान व दिव्य संप्रेषण से आप उनके साथ पुनर्जीवित हो उठेंगे, शरीर की काया व नश्वर चेतना से मुक्त होकर आत्मा के असीमित, नित्य, आनंदलोक में रह सकेंगे।

“हे क्राइस्ट, आप आत्मा में पुनर्जीवित हो गए हैं। हम आपके पुनरुत्थान और आपके वादे का आश्वासन: कि परमेश्वर की संतान होने के नाते, हांढ़-मांस की देह में बद्ध, हम भी एक दिन परमेश्वर के साम्राज्य में पुनः प्रवेश कर सकेंगे, पर आनंद मग्न हैं। इस ईस्टर के पर्व पर, हमारी सारी भक्ति भावना, हमारे हृदय की समस्त उत्कट पुकार, हमारे अंदर भलाई की सारी सुगंध, सर्व व्यापक परमेश्वर के चरण कमलों में समर्पित कर रहे हैं। हम आपके ही हैं, हमें स्वीकार कीजिए! कूटस्थ चैतन्य के द्वारा, हमें शाश्वत दिव्य जगत में अपने संग पुनर्जीवित कीजिये। हमें उस आनंद लोक में सदा सदा के लिए निवास प्रदान कीजिए।”

ईस्टर की सुबह के लिए प्रार्थना व प्रतिज्ञापन

“दिव्य क्राइस्ट हमारी चेतना को अपनी चेतना से संतृप्त कर दीजिए।
हमें अपने अंदर नया जन्म प्रदान कीजिए।”

प्रतिज्ञापन करें और अनुभव करें:

“दिव्य परमपिता परमेश्वर, मुझे कूटस्थ चैतन्य मैं सचेत कीजिए।
क्राइस्ट और मैं एक हैं।
उल्लास और मैं एक हैं।
शांति और मैं एक हैं।
ज्ञान और मैं एक हैं।
प्रेम और मैं एक हैं।
आनंद और मैं एक हैं।
क्राइस्ट और मैं एक हैं।
क्राइस्ट और मैं एक हैं। क्राइस्ट और मैं एक हैं।”

“पुनर्जीवन पर ध्यान” The Second Coming of Christ: The Resurrection of the Christ Within You—परमहंस योगानन्दजी द्वारा जीसस की मूल शिक्षाओं पर दी गई तात्विक टिप्पणी से उद्धृत है।

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