वह अनन्त शक्ति आपका संपोषण करती है

परमहंस योगानन्दजी द्वारा रचित “प्रथम प्रयास करने की शक्ति का विकास करना” से उद्धृत। इसे वाईएसएस द्वारा प्रकाशित परमहंसजी के संकलित प्रवचन एवं आलेख के पहले भाग, मानव की निरन्तर खोज में पूरा पढ़ा जा सकता है।

जनवरी 1925 में लॉस एंजिलिस के फिलहारमोनिक ऑडिटोरियम में बड़ी संख्या में दर्शकों के साथ परमहंस योगानन्दजी की तस्वीर ली गई, जो योग के विज्ञान पर उनका व्याख्यान सुनने आए थे।

पहले मैं गुरु बनने में अनिच्छुक था- उलझनों से डर लगता था। एक शिक्षक को झटकों को सहने की शक्ति वाला होना चाहिए, जैसे ही वह अशान्त होता है, वह उन लोगों की मदद नहीं कर सकता, जो उससे सहायता प्राप्त करना चाहते हैं। एक सच्चे गुरु को सभी से प्रेम करना पड़ता है, मानव जाति को भली-भाँति समझना, और ईश्वर को जानना पड़ता है।

लेकिन जब श्रीयुक्तेश्वरजी ने मुझे बताया कि इस जीवन में मेरी भूमिका एक गुरु की है, तो मैंने अपनी सहायता के लिए ईश्वर की अनन्त शक्ति को पुकारा। जब मैंने व्याख्यान देना आरम्भ किया, तब मैंने अपने मन में निश्चय किया कि मैं पुस्तकीय ज्ञान से नहीं बल्कि आन्तरिक प्रेरणा से बोलूँगा, इस विचार को रखते हुए कि मेरी वाणी के पीछे अपार सृजनात्मक शक्ति है। मैंने उस शक्ति का उपयोग दूसरे क्षेत्रों में भी किया, जैसे व्यवसाय और अनेक अन्य प्रकार से लोगों की सहायता करने के लिए।

मैंने नश्वर मन का उपयोग अनश्वरता को प्रदर्शित करने के लिए किया। मैंने यह नहीं कहा : “हे परमपिता इसे कर दो” बल्कि यह कहा “हे परमपिता मैं इस कार्य को करना चाहता हूँ। आपको मेरा मार्गदर्शन करना होगा, आपको मुझे प्रेरणा देनी ही होगी, आपको मेरा मार्गदर्शक बनना होगा।”

छोटे-छोटे कार्यों को असाधारण ढंग से करें, अपने क्षेत्र में एक सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति बनें। आप अपने जीवन को एक सामान्य ढंग से व्यतीत न करें, कुछ ऐसा करें जो किसी और ने न किया हो, कुछ ऐसा जिससे संसार चकाचौंध हो जाए। यह दिखा दें कि ईश्वर का सृजनात्मक सिद्धान्त आप में कार्य करता है।

बीते हुए समय की चिंता न करें। चाहे आपकी गलतियाँ सागर जितनी गहरी हों, लेकिन आपकी आत्मा उनके द्वारा निगली नहीं जा सकती। बीती गलतियों के सीमित विचारों की बाधाओं को तोड़कर अविचलित दृढ़ निश्चय के साथ अपने मार्ग पर चलते रहें।

चाहे जीवन अन्धकारमय हो, चाहे कठिनाइयाँ आएँ, चाहे सुअवसरों का उपयोग न कर पाएँ, लेकिन अपने अन्तर में यह कदापि न कहें : “मैं टूट चुका हूँ। ईश्वर मुझे भूल गए हैं।” ऐसे व्यक्ति के लिए कौन कुछ कर सकता है? आपके परिवार के लोग आपको त्याग सकते हैं, आपका अच्छा भाग्य आपको धोखा देता दिखाई दे सकता है, मनुष्य और प्रकृति की सभी शक्तियाँ आपके विरुद्ध हो सकती हैं, परन्तु आपके अन्दर विद्यमान कार्य आरम्भ करने की दिव्य शक्ति के गुण के द्वारा, आप अपने बीते गलत कार्यों द्वारा उत्पन्न भाग्य के प्रत्येक हमले को विफल कर सकते हैं, और विजयी बनकर स्वर्ग की ओर बढ़ सकते हैं।

चाहे आप सैकड़ों बार पराजित हुए हों, परन्तु आप दृढ़ निश्चयी बनें कि आप विजयी होकर रहेंगे। पराजय अनन्तकाल तक नहीं रहती। पराजय आपकी एक अस्थायी परीक्षा है। वास्तव में, ईश्वर आपको अजेय बनाना चाहते हैं, आपके अन्दर विद्यमान अनन्त शक्ति का उपयोग करवाना चाहते हैं, जिससे कि जीवन के रंगमंच पर आप अपनी उच्च निर्धारित भूमिका को पूर्ण रूप से निभा सकें।

नव वर्ष में आप क्या सम्पूर्ण करने के लिए कृतसंकल्प हैं?

 आप मानव की निरन्तर खोज और परमहंस योगानन्दजी के संकलित प्रवचन एवं आलेख का एक अन्य हिन्दी में प्रकाशित भाग (दिव्य प्रेम-लीला) वाईएसएस ऑनलाइन बुकस्टोर से प्राप्त कर सकते हैं।

योगदा सत्संग पाठमाला, ध्यान के विज्ञान और संतुलित जीवन जीने की कला पर परमहंसजी का व्यापक गृह-अध्ययन कार्यक्रम जीवन को पूरी तरह से बदलने के लिए किसी की अपनी प्रथम प्रयास करने की अनन्त शक्ति के उपयोग हेतु उनकी संपूर्ण शिक्षाएँ और तकनीकें प्रस्तुत करता है।

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