श्री श्री परमहंस योगानन्द के आश्रमों से जन्माष्टमी पर एक सन्देश — 2023

26 अगस्त, 2023

अपने मन को मुझमें स्थित करो, मेरे भक्त बनो, निरंतर आराधना करते हुए श्रद्धा के साथ मुझे नमन करो। इस प्रकार अपने सर्वोच्च लक्ष्य के रूप में स्वयं को मुझसे संयुक्त करके तुम मुझको ही प्राप्त होगे।

ईश्वर-अर्जुन संवाद : श्रीमद्भगवद्गीता (9:34)

प्रिय आत्मन्,

जनमाष्टमी, भगवान्‌ श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के आनंदोत्सव पर, हमारे पास यह एक पवित्र सुअवसर है कि हम सम्पूर्ण विश्व के उन लाखों भक्तों के साथ सम्मिलित हों, जिनके हृदय इस पावन अवसर पर उनके सर्वव्यापक प्रेम एवं सान्तवना प्रदायक ज्ञान के प्रति पुनः ग्रहणशील होते हैं। ईश्वर-प्रदत्त योग विज्ञान के माध्यम से, पराजय की भावना और माया पर आत्मा की विजय का उनका अमर वचन, हमारे जीवन को दिव्यता प्रदान करने के लिए हम सबके अन्दर नवीन साहस एवं प्रेरणा का संचार करे!

श्रीमद्भगवद्गीता में, करुणानिधान परमात्मा प्रभु, श्रीकृष्ण के माध्यम से बोलते हुए अपने शिष्य अर्जुन— और सभी युगों के सच्चे साधकों — को यह सरल परन्तु गहन मुक्तिदायक परामर्श प्रदान करते हैं : “अपनी चेतना को सदा मेरी आश्रयदायी उपस्थिति में रखो।” ध्यान के द्वारा अपने हृदय और मन को बारम्बार पुनः उस शाश्वत शरण में ले जाने से, हम आत्मा को अवरुद्ध करने वाले माया के प्रभाव तथा स्वयं को मानवीय सीमितताओं से सम्बद्ध करने की प्रवृत्ति को कम कर सकते हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि अन्तर्मुखी चेतना की भक्ति के मन्दिर में हम एक ऐसे दिव्य मित्र के साथ पूर्ण सन्तोष प्रदान करने वाला संबंध स्थापित कर लेते हैं और वे हमारे अपने जीवन के कुरुक्षेत्र के युद्ध में हमारे सबसे प्रिय मित्र, मार्गदर्शक, और हितकारी बन जाते हैं।

गीता वर्णन करती है कि किस प्रकार योगेश्वर के अशर्त प्रेम एवं आशीर्वादों ने महान् किन्तु अस्थायी रूप से विषादग्रस्त अर्जुन का उद्धार किया था और उन्हें जाग्रत किया था। मैं प्रार्थना करता हूँ कि जन्माष्टमी के उत्सव के माध्यम से आपका अपना जीवन भी इसी प्रकार रूपान्तरित हो। ऐसा निश्चित रूप से हो सकता है, यदि आप हमारे गुरुदेव परमहंस योगानन्द के गीता के आत्मा का पुनरुद्धार करने वाले सत्यों के ज्ञानवर्धक रहस्योद्घाटन को हृदयंगम करते हैं और साथ-ही-साथ भगवान् श्रीकृष्ण की राजयोग की पवित्र प्रविधियों का निष्ठापूर्वक अभ्यास करते हैं — जिन्हें इस आधुनिक युग में हमारे गुरुदेव ने ईश्वर के विश्वव्यापी परिवार को प्रसन्नतापूर्वक प्रदान किया है।

हमें उपलब्ध यह अवसर कितना महान् है! मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि इसे न भूलें। क्योंकि श्रीकृष्ण के परम उपलब्धि-प्राप्त शिष्य अर्जुन की भाँति हममें से प्रत्येक व्यक्ति ऐसे अदम्य साहस और अन्तर्ज्ञानात्मक समस्वरता के साथ कार्य करना सीख सकता है जिसके द्वारा इस प्रकाश बनाम अंधकार के युद्धक्षेत्र में अपनी स्वयं की मुक्ति की जीत सुनिश्चित की जा सके।

भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव हम सब के मन में इस ध्यान-जनित बोध को दृढ़ करे कि ईश्वर का प्रेम किसी भी लौकिक वस्तु से अधिक वास्तविक और अधिक स्थायी है — और हम उनकी अनवरत उपलब्ध सहायता, अमोघ मैत्री, तथा असीम संरक्षण प्रदान करने वाली उनकी उपस्थिति का सदैव आह्वान कर सकते हैं।

जय श्रीकृष्ण! जय गुरु!

स्वामी चिदानन्द गिरि

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