असामंजस्य के इस समय में आध्यात्मिक सद्भाव को बढ़ावा देना

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स्वामी चिदानन्द गिरि का सन्देश

[स्वामी चिदानन्दजी के 2018 में प्रकाशित एक पत्र से। यद्यपि यह पत्र चार वर्ष पूर्व लिखा गया था, इसका मूल संदेश आज और भी अधिक महत्वपूर्ण है—यह उन दृष्टिकोणों और क्षमताओं को उजागर करता है जिनके साथ हम भेदभाव और उथल-पुथल से परे निकल जाने के लिये अपनी पहचान स्थापित कर सकते हैं।]

प्रिय आत्मन्,

मैं अपने दैनिक ध्यान में हमारे गुरुदेव श्री श्री परमहंस योगानन्द के विश्व भर में फैले सुन्दर आध्यात्मिक परिवार के बारे में सोचता हूँ, और प्रार्थना करता हूँ कि ईश्वर एवं गुरु आपके जीवन तथा आध्यात्मिक प्रयासों का मार्गदर्शन करें, और उनके प्रेम एवं ज्ञान में एक गहन व अखण्ड सुरक्षा महसूस करने में आपकी सहायता करें। मैं जानता हूँ कि विश्व भर में अनेक भक्त इस बात को लेकर अत्यधिक चिन्तित हैं कि जिस वैश्विक परिवार को ईश्वर ने स्थाई प्रसन्नता के अपने नैतिक नियमों का अनुसरण करते हुए शांति, सामंजस्य, और आपसी सहयोग के साथ रहने के लिए बनाया था, उसके निरन्तर ध्रुवीकरण से बनते गुटों के बीच आज समाज में भेदभाव और कुरूपता क्यों फैलाई जा रही है। यह द्वंद्वात्मक जगत् हमेशा से ही प्रकाश एवं अँधकार के बीच एक युद्धभूमि रहा है और रहेगा; परन्तु हमारे आज के युग में, जो कि इन्टरनेट एवं अन्य जन-संचार माध्यमों द्वारा हमारे आन्तरिक और बाहरी वातावरण में पैठ बनाते अधर्म और नकारात्मकता की लगभग-निरंतर गोलाबारी झेल रहा है, ईश्वर के शाश्वत् सत्यों : अच्छाई एवं नैतिक-मूल्यों पर होने वाले आक्रमण स्पष्ट रूप से बढ़े हुए प्रतीत हो सकते हैं।

परन्तु हमें भविष्य के बारे में निराश होने की आवश्यकता नहीं है। याद रखें कि जिस प्रकार सोशल मीडिया किसी एक व्यक्ति की दुर्भावनापूर्ण वाणी को कई गुना बढ़ा सकता है, और फलस्वरूप न केवल उस व्यक्ति के आस-पड़ोस, बल्कि उससे कहीं आगे जाकर असंख्य लोगों को प्रभावित कर सकता है, उसी प्रकार इसमें इस बात की भी उतनी ही या उससे अधिक क्षमता है कि यह प्रत्येक मानव प्राणी में ईश्वर की छवि में निर्मित आत्मा के सभी दिव्य गुणों – सत्य, सुन्दरता, सौजन्यता, ज्ञान, करूणा के प्रभाव को भी कई गुना बढ़ा सकता है। ऐसा कैसे है? क्योंकि किसी भी डिजिटल संचार प्रौद्योगिकी से अधिक दूरगामी वह स्पन्दनात्मक शक्ति होती है जो कि क्रियायोग ध्यान द्वारा शक्तिशाली रूप से एकाग्र और अनन्त अच्छाई के स्रोत : ईश्वर से समस्वर, प्रत्येक हृदय और मन के प्रसारण केन्द्र से वैश्विक वातावरण के अणु-परमाणु में – और प्रत्येक जीवित प्राणी की चेतना या अवचेतना में – प्रसारित की जाती है। कभी न भूलें कि दैनिक ध्यान एवं हमारे विश्वव्यापी प्रार्थना मण्डल में भागीदारी का संकल्प लेकर आप कितना अधिक अच्छा कर सकते हैं।

प्रकाश एवं सत्य का दिव्य योद्धा जो योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप तथा क्रियायोग जैसे किसी पथ पर आकर्षित किया जाता है, पृथ्वी पर आध्यात्मिक सद्भाव (धर्म) बढ़ाने के लिए बाहरी और आन्तरिक साधनों का उपयोग कर सकता है। स्वयं को तथा आपकी चेतना में पैठ चुके किन्हीं अप्रिय अहं-लक्षणों को बदलने को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए, जब परिस्थितियाँ ऐसे किसी कर्तव्य को आपके सामने प्रस्तुत करें, तो बुराई का असहयोग करने के लिए बाहरी तौर पर भी डटकर खड़े रहें। हालाँकि, बस इतना याद रखें, कि ऐसा करते हुए शत्रुता का भाव रखना एवं नम्रता की कमी आपको शीघ्र ही वापिस उसी ओर मोड़ देगी जिसका आप कथित रूप से विरोध कर रहे हैं; और वह आध्यात्मिकता एवं सत्य राजनीतिक संबद्धता द्वारा परिभाषित नहीं है।

सामूहिक कर्म को जो कि अन्य सभी युगों की तरह ही हमारे वर्तमान युग में भी, विश्व की घटनाओं के प्रकट होते नाटक को प्रभावित करता है, हमेशा ही सीमित मानवीय बुद्धि द्वारा समझा नहीं जा सकता। आखिरकार, एक राष्ट्र का स्वास्थ्य एवं सद्भाव उस समाज में प्रचलित अच्छाई और बुराई के मिश्रण, तथा उसके सामूहिक कर्म के कारण होता है। हमारे समय की —
तथा किसी भी अन्य समय की — आवश्यकता है कि बड़े पैमाने पर लोग अपने हृदय से ईश्वरहीनता, अनैतिकता, और अधार्मिकता की बुराईयों को निकालें। एक जो सबसे शक्तिशाली तरीका है जिससे आप इन अंधकारमय परिस्थितियों में प्रकाश फैला सकते हैं, वह है : सभी धर्मों में समान रूप से बताये गए दिव्य सत्यों, जो कि वाईएसएस/एसआरएफ़ शिक्षाओं में सार रूप में समाहित हैं, कि किसी सिद्धान्त का प्रतिदिन अभ्यास करना। यह एक सक्रिय पहल है जिससे आप अपनी चेतना को ऊपर उठा सकते हैं और ईश्वर की अच्छाई की अजेय शक्ति से अपने विचारों एवं कर्मों को सशक्त बना सकते हैं। उदाहरण के लिए, प्रतिदिन सुबह पाठों से, या आध्यात्मिक दैनंदिनी से थोड़ा कुछ पढ़ें — या श्रीमद्भगवद्गीता या फिर बाइबिल से अपना प्रिय उद्धरण लें — और इसे अपने पूरे दिन का सूत्र वाक्य बना लें। जब आप कोई ऐसा समाचार सुनते हैं जो आपकी आन्तरिक शांति और संतुलन को भंग कर देता है, तो उस सत्य को मज़बूती से थामे रहें, और यह जान लें कि जिस इच्छा-शक्ति से आप इसका प्रतिज्ञापन कर रहे हैं और इसे अपने जीवन में उतार रहे हैं, इससे आप उस नकारात्मकता को प्रभावहीन बनाने में सहायता कर रहे हैं। जब आप गुरुजी की अदम्य, सकारात्मक प्रवृत्ति का अनुसरण करते हैं, और ईश्वर-सम्पर्क के पवित्र क्रियायोग विज्ञान का अभ्यास करते हैं, जिसे इस विश्व और विशेषत: इस समय के लिए जिससे होकर हम गुज़र रहे हैं, एक विशेष विधान के रूप में लाने के लिए उन्हें नियत किया गया था, तब हम स्वयं को यह सिद्ध करते हैं कि इस विश्व का ध्यान रखने वाले ईश्वर एवं महान् गुरुजनों की सहायता से हम मानवता की मदद कर सकते हैं ताकि यह अज्ञान-जनित भयों और घृणा की ज़ंजीरों से निकलकर एक ऐसे जगत् में प्रवेश कर सके जो ईश्वर के सामंजस्यकारी तथा संतुलनकारी प्रेम एवं आनन्द-चेतना के साथ अधिक समस्वर है।

आपसे मिलने वाले सभी लोगों में अच्छाई तथा आध्यात्मिक चेतना की अभिव्यक्तियों को खोजते रहें और इन पर एकाग्र करें — उन लोगों में भी जो आपसे भिन्न मत रखते हैं — और आप पायेंगे कि सभी को इस दृष्टि से देखने का यह कार्य इस जगत् में ईश्वर की उपस्थिति की अभिव्यक्ति को बढ़ाता है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान् कहते हैं : “मैं सभी प्राणियों के हृदय में स्थित हूँ।” दूसरों को आत्मा के रूप में देखें, और आदर एवं प्रशंसा के उस दृष्टिकोण से आप सूक्ष्म रूप से उनसे—तथा स्वयं से भी—आत्मिक गुणों की और भी अधिक अभिव्यक्ति को आकर्षित करेंगे।

यदि आप स्वयं को इस विश्व में, या अपने स्वयं के जीवन में जो कुछ ठीक नहीं है उस बारे में बहुत अधिक सोचते, पढ़ते, या बातें करते पाएं, तो अपने ध्यान को बदलने का प्रयास करें। उस समय और ऊर्जा का उपयोग अच्छे विचारों को सोचने, प्रार्थना करने, सेवा एवं उदारता के अच्छे कार्यों को करने, तथा स्वयं को एक ऐसा व्यक्ति बनाने में करें जिससे करुणा, सहानुभूति, एवं प्रसन्नता नि:सृत होती हो। ऐसा करके, आप अपनी तथा दूसरों की भी चेतना को ऊपर उठाएंगे। और जब आप श्रद्धापूर्वक ध्यान करते हैं और अपने अस्तित्व की गहराई में स्थित देवालय में प्रवेश करते हैं, जहाँ सभी विचार शान्त हो जाते हैं, तो आप उस प्रेम को अधिकाधिक महसूस करेगे जिसमें ईश्वर प्रत्येक आत्मा से प्रेम करते हैं, तथा वह प्रेम दूसरों को भी दे सकेंगे। अपने स्वयं के कल्याण पर, अपने आस-पास के लोगों पर, तथा समग्र मानवता पर अपने आध्यात्मिक प्रयासों के सकारात्मक प्रभाव को कभी कम करके न आँकें। गुरुजी ने कहा है, “जो व्यक्ति अपने शरीर, मन, एवं आत्मा को ईश्वर से सुसंगत करते हुए, हर प्रकार से आत्मोन्नति का प्रयास करता है, वह न केवल अपने स्वयं के जीवन में, बल्कि उसके परिवार, आस-पड़ोस, देश, और ईश्वर में भी सकारात्मक कर्म निर्मित करता है।”

अपने जीवन में ईश्वर के प्रकाश एवं प्रेम को प्रतिबिम्बित करने का प्रयास करते हुए आपको सदा उनके आर्शीवाद प्राप्त हों।

स्वामी चिदानन्द गिरि

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