“परमहंस योगानन्दजी से प्राप्त ज्ञान का अध्ययन करना सीखें” — श्री मृणालिनी माता द्वारा एक अनुभव”

09 नवम्बर, 2023

श्री मृणालिनी माता, जिन्होंने 2011 से 2017 में अपने देहावसान तक संघमाता और योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप की चौथी अध्यक्ष के रूप में कार्य किया, का यह ब्लॉग पोस्ट उनके लेख “आध्यात्मिक पठन का विज्ञान एवं अंतर्निरीक्षण की कला” जो योगदा सत्संग पत्रिका के जनवरी-मार्च, 2017 के अंक में प्रकाशित हुआ, से उद्धृत किया गया।

हम कम उम्र के कुछ शिष्य यहाँ एन्सिनिटस में रहा करते थे; और रविवार सुबह, जब प्रत्येक दूसरे सप्ताह (एक सप्ताह हॉलीवुड टेम्पल, लॉस एंजिलिस में) वे सैन डिएगो टेम्पल में अपने व्याख्यान दिया करते थे, तो हम भी वहाँ उपस्थित होते थे।

वे हमें इस बात के लिए प्रोत्साहित करते थे कि उनके व्याख्यानों और कक्षाओं के दौरान हम महत्वपूर्ण बिन्दुओं को लिख लें। और फिर, पूरे सप्ताह भर, हम प्रतिदिन शाम को आश्रम के बैठक कक्ष में, या भोजन कक्ष की मेज़ के आसपास एकत्र होते थे और हम अपने लिखे हुए बिन्दुओं को मिलाते थे।

हममें से प्रत्येक अपनी स्मृति से वह दोहराता था जितना भी वह गुरुजी के व्याख्यान से ग्रहण कर पाया है, उसके बाद, हममें से प्रत्येक, स्वयं अपने हाथों से, अपने विचारों से गुरुजी द्वारा दी गई शिक्षाओं को फिर से लिखते थे। और हम यह देखने के लिए अन्तर्निरीक्षण करते थे कि उस शिक्षा को अपने जीवन में कैसे उतार सकते हैं।

इस प्रकार, हम गुरुजी की एक कक्षा, या एक व्याख्यान पर पूरा एक या दो सप्ताह लगाते थे। इसने हमें न केवल यह सिखाया कि गुरुजी के ज्ञान और मार्गदर्शन को कैसे आत्मसात् किया जाए, बल्कि यह भी कि इन्हें जीवन में उतारना कैसे सीखा जाए।

जब अगले सप्ताह गुरुदेव एन्सिनिटस वापस आते थे, तो कभी-कभी वे उस कक्ष में टहलते रहते थे जबकि हम अपने अध्ययन संबंधी विचार-विमर्श करते रहते थे। स्वाभाविक रूप से, हम गुरुजी के सामने अपना “ज्ञान” प्रदर्शित करने में शर्माते थे!

परन्तु वे एक जगह बैठ जाते और कहते, “नहीं, नहीं, करते रहो; चालू रखो।” और जब हम वह व्यक्त करने का प्रयास करते थे जो हमने सीखा है, तो वे अत्यधिक प्रसन्न होते थे। वे किसी स्कूल के व्याख्याता की तरह हमसे प्रश्न करते थे, “अब बताओ कि मैंने इसके बारे में क्या कहा था?” या “मैंने उसके बारे में क्या कहा था?” “मेरे द्वारा प्रयुक्त उस शब्द का क्या अर्थ है?” — केवल यह देखने के लिए कि हम कितना आत्मसात् कर पाए हैं।

और मैं आपसे कह सकती हूँ कि हम इसे पूरी तरह ग्रहण नहीं कर पाते थे! अतः जब हम उनके व्याख्यान सुनने जाते थे, तो वे हम छोटे आश्रमवासी शिष्यों को सबसे सामने की पंक्ति में बिठाते थे। और व्याख्यान देते हुए, शायद कोई गहरा या पेचीदा आध्यात्मिक विषय समझाने के बाद, वे बीच में ही रुक जाते और वहीं से हमारी ओर देख कर पूछते : “क्या तुम्हें समझ में आया?”

वहाँ उपस्थित सारे श्रोता आश्चर्य करते होंगे, “ये किससे बातें कर रहे हैं?” या “वहाँ बैठे उन छोटे बच्चों का इन बातों से क्या लेना-देना?”

वास्तव में वे दो भूमिकाएँ निभा रहे थे : वे अपने चरणों में बैठे छोटे प्रशिक्षु शिष्यों के लिए गुरु थे, और जन-साधारण को ये शाश्वत् सत्य प्रदान कर रहे एक जगद्गुरु।

जब गुरुजी हमारे बीच थे, उन्होंने हमारा मार्गदर्शन किया। और जब हम ग़लत होते थे, तो वे मात्र कुछ शब्द ही कहते थे, या मात्र एक मौन परन्तु एक अर्थपूर्ण दृष्टि। उन्होंने हमें उचित व्यवहार संबंधी आवश्यक बातें बताईं।

ये बातें कहने के लिए वे अब शरीर रूप में नहीं हैं। परन्तु जैसा उन्होंने हमसे कहा है, “मेरे जाने के बाद ये शिक्षाएँ ही गुरु होंगी। एसआरएफ़ [वाईएसएस] शिक्षाओं के माध्यम से तुम मुझसे और उन महान् गुरुओं से समस्वर रहोगे जिन्होंने मुझे भेजा है।”

और मैंने उन शब्दों की सत्यता का बोध किया है, क्योंकि जब हम उनकी पुस्तकों और एसआरएफ़ [वाईएसएस] पाठों, से उनकी शिक्षाओं को गहराई से आत्मसात् करते हैं, तो हम पाते हैं कि वे केवल निरन्तर प्रेरणा का ही एक स्रोत नहीं हैं, अपितु हमारे लिए व्यक्तिगत मार्गदर्शन तथा परामर्श का स्रोत भी हैं।

नीचे दिए गए लिंक पर आप योगदा सत्संग पाठमाला, ध्यान के विज्ञान और संतुलित आध्यात्मिक जीवन की कला पर परमहंस योगानन्दजी के व्यापक गृह-अध्ययन पाठ्यक्रम के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। परमहंसजी ने इन पाठों को अपनी शिक्षाओं के मूल के रूप में देखा था — क्रियायोग ध्यान की प्रविधियाँ और एक समग्र जीवन-शैली का प्रस्तुतिकरण — ताकि साधक सीधे उनके निर्देशों से उनके ज्ञान को आत्मसात कर सकें और आध्यात्मिक पथ पर उनका व्यक्तिगत मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें।

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