स्वामी चिदानन्द गिरि द्वारा “आध्यात्मिक नियम मुझे इस विश्व में एक दिव्य प्राणी के रूप में जीने में कैसे सहायता कर सकते हैं?”

16 नवम्बर, 2022

यह ब्लॉग पोस्ट स्वामी चिदानन्द गिरि के प्रवचन “यम और नियम : आंतरिक शक्ति और स्वतंत्रता के लिए ‘आदर्श-जीवन’ शिक्षाएँ” का एक अंश है, जो 2015 में योगदा सत्संग पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। जिन्होंने इस पत्रिका की सदस्यता ली है वे पिछले लेखों के व्यापक ऑनलाइन पुस्तकालय में इस व्याख्यान की पूरी लिखित प्रस्तुति पा सकते हैं। स्वामी चिदानन्दजी 2017 में वाईएसएस/एसआरएफ़ के अध्यक्ष बने।

योग सूत्र से यम और नियम के प्रति आत्मा की अभिलषित प्रतिक्रिया

यम और नियम के सिद्धांतों को योग के उस प्राचीन ग्रंथ, महान् ऋषि पतंजलि के योग सूत्र  में वर्णित किया गया है; वे भारत की आध्यात्मिक सभ्यता के उच्च युगों से हमारे पास आए हैं।

यम  हैं :

  • अहिंसा (हानिरहित);
  • सत्य (सच्चाई);
  • अस्तेय (चोरी न करना);
  • अपरिग्रह (लोलुपता न होना, संपत्ति के अधीन न होना);
  • और ब्रह्मचर्य (शरीर में सृजनात्मक शक्ति पर प्रभुत्व)।

नियम  भी उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं :

  • शौच (शरीर और मन की पवित्रता);
  • संतोष (सभी परिस्थितियों में संतोष, शांति, समभाव);
  • तप (आत्म-अनुशासन की क्षमता);
  • स्वाध्याय (शास्त्रों का आत्म विश्लेषणात्मक अध्ययन);
  • और अंतिम, ईश्वर-प्रणिधान (ईश्वर और गुरु के प्रति समर्पण)।

उन विशेषताओं को केवल सुनकर अपनी आंतरिक प्रतिक्रिया पर ध्यान दें। क्या हमारी आत्मा, यदि कुछ भी जागृत है, तो फुसफुसाती है : “हाँ! मैं यही चाहती हूँ। मैं वही हूँ!” यह आत्मा की वह प्रतिक्रिया है कि हम किस प्रकार से अंतर्ज्ञान द्वारा जानते हैं कि इन नियमों में अद्भुत सकारात्मक मूल्य हैं।

हम अनंत शक्ति, श्रेष्ठ आचरण वाले और वैभव शाली प्राणी हैं। और इनमें से प्रत्येक आध्यात्मिक नियम एक प्रवेशद्वार है, एक विवर है, जो हमें उस दिव्य प्रकृति के एक विशेष पक्ष तक पहुँचने में सक्षम बनाता है, जो अन्यथा भ्रम से ढंका हुआ है, लापरवाही से घिरा हुआ है, जब तक हम भौतिक शरीर, अहंकार और भौतिक जगत से जुड़े रहते हैं।

आध्यात्मिक नियम सीमित करने के लिए नहीं बल्कि सशक्त बनाने के लिए हैं

हमारे गुरु, परमहंस योगानन्दजी ने दस धर्मादेशों के विषय में यह कहा था — जो फिर से, इन सार्वभौमिक नियमों को बनाने का एक और तरीका है :

“दस धर्मादेशों का और अधिक अच्छा नाम ‘प्रसन्नता के दस शाश्वत नियम’ हो सकता था। ‘आदेश’ शब्द एक दुर्भाग्यपूर्ण चयन है, क्योंकि कुछ ही लोग आदेश मानना पसन्द करते हैं। जैसे ही आप किसी बच्चे को कोई कार्य करने से मना करते हैं, वह तुरंत वही कार्य करना चाहता है।….फिर भी दस धर्मादेशों का उल्लंघन करना, संसार में समस्त कष्टों का मूल स्रोत है।”

उन परिस्थितियों के कारण जो आधुनिक, संचार-मीडिया द्वारा संचालित विश्व हम पर थोपने की कोशिश करता है, बहुत से लोग नैतिकता के प्रति “पुराने ज़माने में” इस प्रकार की नकारात्मक मनोवृत्ति रखते हैं।

हालाँकि, जैसा कि आध्यात्मिक मार्ग के कई पक्षों के बारे में सत्य है, हमारे गुरु ने इस समझ में क्रांति लादी कि नैतिकता क्या है। उन्होंने कहा, संक्षेप में, नैतिकता विश्व में जीने का तरीका है, साथ ही हमारे दिव्य संपर्क को बनाए रखते हुए, उस कड़ी को बनाए रखना जो हम वास्तव में हैं — दिव्य प्राणी।

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