चैंटिंग, मानसदर्शन और ध्यान के माध्यम से — आध्यात्मिक नेत्र के दिव्य प्रकाश से जुड़ना

परमहंस योगानन्दजी और उनके गुरुओं द्वारा सिखाए गए ध्यान के अभ्यास का एक अभिन्न अंग भौंहों के बीच के बिंदु, जिसे आध्यात्मिक नेत्र या शरीर में कूटस्थ या क्राइस्ट चैतन्य केन्द्र के रूप में जाना जाता है, उस पर ध्यान लगाना और सौम्यता से दृष्टि एकाग्र करना है। परमहंसजी प्रायः शरीर में अंतर्ज्ञान और दिव्य धारणा के केन्द्र, आध्यात्मिक नेत्र के महत्त्व पर जोर देते थे, जिसके बारे में जीसस ने भी कहा था : “इसलिए यदि तेरी आँख एक हो जाए, तो तेरा पूरा शरीर प्रकाश से भर जाएगा” (मैथ्यू 6:22)। एसआरएफ़ संन्यासी स्वामी सरलानन्द द्वारा हाल ही में पोस्ट किए गए प्रेरणाप्रद वीडियो “द डीपर टीचिंग्स ऑफ़ जीसस क्राइस्ट” पर इस पर सुंदर ढंग से चर्चा की गई है।

अपने जीवन और चेतना में और इस प्रकार विश्व में अधिक प्रकाश लाने के लिए — आप आध्यात्मिक नेत्र के बारे में नीचे दिया गया एक संक्षिप्त परिचय पढ़ सकते हैं और इस उन्नत आध्यात्मिक केन्द्र से जुड़ने के कुछ तरीकों का अभ्यास कर सकते हैं। (और पृष्ठ के नीचे आगे की खोज के लिए कुछ संसाधन सूचीबद्ध हैं, क्योंकि यह आध्यात्मिक पथ पर वास्तव में एक गहरा विषय है।)

आध्यात्मिक नेत्र एक "उपल नूर" के रूप में — चैंटिंग के माध्यम से मिलन

परमहंस योगानन्दजी ने आध्यात्मिक नेत्र के बारे में “उपल नूर” नामक एक चैंट की रचना की (जो उनकी पुस्तक कॉस्मिक चैंट्स में पाया जा सकता है)।

यह चैंट, जिसे प्रायः वाईएसएस/एसआरएफ़ में क्रिसमस के अवसर पर परमहंसजी द्वारा प्रचलित पूरे दिन के क्रिसमस ध्यान के दौरान गाया जाता है, जोकि ललाट के भीतर आध्यात्मिक नेत्र के “द्वार” से भक्त के मार्ग का वर्णन करता है।

योगी आध्यात्मिक नेत्र को सुनहरे प्रकाश के एक वृत्त के रूप में देखता है जो उपलसदृश नीले रंग के गोले को घेरे हुए है; और केन्द्र में, एक चमकीला सफ़ेद तारा है। (परमहंसजी ने समझाया कि जब जीसस को जॉन द बैपटिस्ट द्वारा बपतिस्मा दिया गया, तो उन्होंने तारा युक्त आध्यात्मिक नेत्र को “ब्रह्म को कपोत सदृश स्वर्ग से उतरते हुए” की भांति देखा था। इसके “पंख” नीली और सुनहरी किरणों के आभामंडल का प्रतिनिधित्व करते हैं।)

जो लोग भक्ति और प्राणायाम (जीवन शक्ति नियंत्रण) प्रविधियों — जैसे कि वाईएसएस पाठों में सिखाए जाने वाले ध्यान के क्रियायोग विज्ञान के माध्यम से — दैदीप्यमान द्वार से गुज़रते हैं वे सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त क्राइस्ट चैतन्य [कूटस्थ चैतन्य] के साथ संवाद करते हैं।

हम आपको इस चैंट के गान में (ज़ोर से या मानसिक रूप से) सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित करते हैं, जो आपको आध्यात्मिक नेत्र के दिव्य प्रकाश की कल्पना करने और उससे जुड़ने में सहायता कर सकता है।

“उपल नूर”

देखना हो गर उपल नूर, अंधियारा करो दूर,
चीरकर अपना मौन प्राणायाम कृपाण से तुम।

नीलाक्ष तारा भेद, देखो क्राइस्ट् हर जगह,
सुप्त जो हर कण में, अणु में, परमाणु में।

स्वर्णिम, धूमिल आभा करे शोभित उपल द्वार;
नीलस्थ तारे से, मिलो क्राइस्ट् से हर जगह।

प्रभा मण्डित तारा-कपोत बैठे ललाट पर,
दर्शाये क्राइस्ट् राज हर दिल की शांति में।

नेत्र दो कर एकल ज्योत तारा द्वार कर अवलोक;
काया बने ज्योतिर्मय, हो सृष्टि दीप्तिमय।

प्रज्ञा से प्रेरित हो, तारा नयन की राह चलो,
देखने अपनी आत्मा में क्राइस्ट् का नव प्रभव।

ज्वाला मण्डित तारा कपोत, दे तू अपनी दीक्षा-ज्योत,
कर दे मेरी आत्मा व्याप्त ब्रह्मानन्द में क्राइस्ट् के साथ।

भू भवन में उज्ज्वल द्वार, हे तारा! भेदूँ तुझे
देखूँ सूक्ष्म ज्योतिर्धाम सब में जो फूँके प्राण।

देखना हो गर उपल नूर, अंधियारा करो दूर!

 

आध्यात्मिक नेत्र पर निर्देशित ध्यान और मानसदर्शन

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप के अध्यक्ष और आध्यात्मिक प्रमुख स्वामी चिदानन्द गिरि आध्यात्मिक नेत्र पर एक निर्देशित अनुभव का संचालन करते हैं। यह निर्देशित मानसदर्शन और ध्यान उस प्रवचन का भाग था जो स्वामी चिदानन्दजी ने 2019 में भारत के “प्रकाश के पर्व” दिवाली पर वाईएसएस राँची आश्रम में दिया था। (उस चर्चा में, जिसका शीर्षक था “दीवाली का आंतरिक उत्सव : आत्मा के प्रकाश को जागृत करना”, उन्होंने गहनता से चर्चा की कि हम योग के आत्मा-विज्ञान का अभ्यास करके अपने भीतर सर्वशक्तिमान दिव्य प्रकाश की जागृति का अनुभव कैसे कर सकते हैं।)

स्वामी चिदानन्दजी जब इस दिव्य प्रकाश को जागृत करने के लिए इस शक्तिशाली निर्देशित ध्यान को शुरू करते हैं तो कहते हैं, “सबसे पहले जब आप उस स्थान को देखते हैं तो वहाँ केवल अंधकार दिख सकता है, लेकिन उस अंधेरे के पीछे आत्मा का प्रकाश है, मानव रूप में ब्रह्म की उपस्थिति है।”

Play Video about The Inner Celebration of Diwali

क्या आप गहराई तक जाना चाहते हैं?

क्या आप अनुभव की असंख्य परतों के बारे में और अधिक समझना चाहते हैं जो आध्यात्मिक नेत्र और आतंरिक प्रकाश के दिव्य साम्राज्य को जानने से प्राप्त हो सकती हैं? यहाँ कुछ उपयोगी लिंक दिए गए हैं :

वाईएसएस बुकस्टोर के माध्यम से उपलब्ध परमहंसजी की शास्त्र संबंधी टिप्पणियाँ, आध्यात्मिक नेत्र के बारे में अंतर्दृष्टि और प्रेरणा से भरपूर हैं :

योगदा सत्संग पाठमाला क्रियायोग ध्यान के विज्ञान और संतुलित जीवन जीने की कला पर परमहंस योगानन्दजी की शिक्षाओं का एक घरेलू अध्ययन पाठ्यक्रम है, जिसका अभ्यास व्यक्ति को आध्यात्मिक नेत्र के दिव्य द्वार का अनुभव करने और उससे गुज़रने में सक्षम बना सकता है।

अभ्यास करने हेतु प्रतिज्ञापन — दिव्य प्रकाश से परिपूर्ण होना

प्रतिज्ञापन करें : “मैं अपने शारीरिक नेत्र बंद कर दूँगा और पदार्थ के प्रलोभनों को नकार दूँगा। मैं मौन के अंधेरे में तब तक झाँकता रहूँगा जब तक मेरे सापेक्षता के नेत्र प्रकाश के एक आंतरिक नेत्र में नहीं खुल जाते। जब मेरे दोनों नेत्र जो अच्छाई और बुराई दोनों को देखते हैं, एक हो जाएँगे और प्रत्येक वस्तु में केवल ईश्वर की दिव्य अच्छाई को देखूँगा, तो मैं देखूँगा कि मेरा शरीर, मन और आत्मा उनके सर्वव्यापी प्रकाश से आपूरित हो गए हैं।”

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