श्री श्री राजर्षि जनकानंद

संक्षिप्त जीवन वृतांत

राजर्षि जनकानन्द (जेम्स जे. लिन) परमहंस योगानन्दजी के प्रिय शिष्य थे और वह योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़ रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप में परमहंसजी के प्रथम उत्तराधिकारी और इन संस्थाओं के आध्यात्मिक अध्यक्ष व प्रमुख हुए। इस पद पर 20 फरवरी, 1955 को अपने शरीर त्याग तक वह कार्यरत रहे। श्री लिन ने परमहंसजी से 1932 में क्रियायोग की दीक्षा प्राप्त की। उनकी आध्यात्मिक प्रगति इतनी तीव्र थी कि गुरुजी 1951 में राजर्षि जनकानन्द को संन्यास की उपाधि प्रदान करने तक “सन्त लिन” कहा करते थे।

Sketch of Rajarsi Janakananda

राजर्षि जनकानंदजी के श्री श्री परमहंस योगानन्दजी के साथ बिताए कई वर्षों का सुंदर वृतांत, फ़ोटो सहित यहाँ देखा जा सकता है योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़ रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप द्वारा प्रकाशित Rajarsi Janakananda: A Great Western Yogi, नामक पुस्तक में उनके जीवन वृत्तांत को पाया जा सकता है। इस पुस्तक में उनके जीवन का विस्तृत वृत्तांत तथा व्याख्यानों के अंश प्राप्त होते हैं। इस पुस्तक में परमहंसजी और राजर्षि के व्यक्तिगत पत्राचार के 60 से अधिक पृष्ठ भी हैं जिनमें उनके मध्य मार्गदर्शन और प्रेम की भाषा की झलक देखी जा सकती है जो गुरु-शिष्य संबंध की गहनता भली-भांति दर्शाती है। योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़ रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप की परमहंस योगानन्दजी के दुर्लभ व्याख्यानों की कलैक्टर सीरीज़ की 2 सीडी में राजर्षि द्वारा संक्षिप्त बातचीत की ऑडियो रिकॉर्डिंग उपलब्ध है : Self-Realization: The Inner and the Outer Path In the Glory of the Spirit

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